Sunday, June 2, 2024
साहित्य जगत

सुहागिनों का पावन पर्व हरतालिका तीज

भारतीय संस्कृति मे त्यौहार का विशेष महत्त्व है। सुख, सौभाग्य और पराक्रम का बोध कराने वाले त्यौहारों का हिन्दू जन मानस मे हमेशा स्वागत किया जाता है। विशेषकर महिलाओं में गजब का उत्साह दिखाई पड़ता है। प्रत्येक के त्यौहार का एक ही लक्ष्य परिलक्षित होता है घर परिवार में खुशियों का माहौल बनाए रखना और एक दूसरे के और करीब आना हर त्यौहार हम सबको अपनों के करीब लाता है और घर में वातावरण उल्लास और आनंद से भर जाते हैं । इन्हीं में से एक अति विशेष त्यौहार है ‘कजरी तीज’ या हरतालिका तीज यह व्रत भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को रखा जाता है ऐसी परम्परा है। शास्त्रों में कहा जाता है कि अखण्ड सुहाग के लिए इस दिन शिव-पार्वती का विशेष पूजन अर्चन किया जाता है। शास्त्रों मे इसके लिये कुंवारी कन्याएं, विधवा-सधवा सभी को व्रत रहने की सम्पूर्ण छूट है।
‘कजरी तीज’ से कुछ दिन पूर्व सुहागिन महिलाएं नदी-तालाब आदि से मिट्टी लाकर उसका पिंड बनाती हैं और उसमें जौ के दाने बोती हैं। रोज इसमें पानी डालने से पौधे निकल आते हैं। इन पौधों को कजरी वाले दिन लड़कियां अपने भाई तथा बुजुर्गों के कान पर रखकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। इस प्रक्रिया को ‘जरई खोंसना’ कहते हैं। कजरी का यह स्वरूप केवल ग्रामीण इलाकों तक सीमित है। यह खेल गायन करते हुए किया जाता है, जो देखने और सुनने में अत्यन्त मनोरम लगता है। कजरी-गायन की परंपरा बहुत ही प्राचीन है। सूरदास, प्रेमधन आदि कवियों ने भी कजरी के मनोहर गीत रचे थे, जो आज भी गाए जाते हैं। ‘कजरी तीज’ को ‘सतवा’ व ‘सातुड़ी तीज’ भी कहते हैं।
इस व्रत को ‘हरितालिका’ इसलिए कहते हैं कि पार्वती की सखी उसे पिता प्रदेश से हरकर घनघोर जंगल मे ले गई थी। ‘हरत’ शब्द का अर्थ है- ‘हरण करना’ तथा ‘आलिका’ शब्द का अर्थ है- ‘सहेली’, ‘सखी’ आदि, अर्थात् सखी हरण करने की प्रक्रिया के कारण ही इस व्रत का नाम ‘हरितालिका तीज’ व्रत पड़ा। मुख्यतः इस दिन व्रत रहने वाली स्त्रियां संकल्प लेकर घर की साफ, सफाई कर, पूजन सामग्री एकत्रित करती हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि इस व्रत को करने वाली सभी स्त्रियां देवी पार्वती के समान सुखपूर्वक पतिरमण करके साक्षात शिवलोक को जाती हैं। इस व्रत में पूर्णतः निराहार निर्जला रहना होता है। सूर्यास्त के समय स्नान करके, शुद्ध तथा श्वेत वस्त्र धारण कर शिव-पार्वती की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर स्वच्छ निर्मल वस्त्र पहन कर सोलह सिंगार कर पूजन करना चाहिये। जहाँ तक सम्भव हो, प्रातः दोपहर और सायंकाल की पूजा भी घर पर ही करना श्रेयस्कर होता है।

स्त्रियाँ निराहार निर्जला रहकर व्रत करें।
पूजन के पश्चात् ब्राह्मण को भोजन के साथ यथाशक्ति दक्षिणा देकर ही व्रत का पारण करें।
सुहाग सामग्री किसी गरीब ब्राह्मणी या जरूरतमंद को ही देना चाहिए।
सास-ननद आदि को चरण स्पर्श कर उचित स्नेह आशीर्वाद लेना चाहिए।
शुद्धता के साथ और शुद्ध मन: स्थिति के साथ ही शिव और पार्वती माँ का पूजन करना चाहिए।
सच्ची लगन और निष्ठा के साथ ही गौरी-शंकर का पूजन-भजन करना चाहिये।
सभी त्योहार व्रत उपासना का एक ही परम लक्ष्य है पारस्परिक सौहार्द एवं एक दूसरे के लिए त्याग और आपसी सामंजस्य स्थापित करना ही जीवन का लक्ष्य है और हमारे ऋषि-मुनियों ने इसकी नींव बहुत ही वैज्ञानिक ढंग और सूझबूझ से रखी है। आइए अपने त्यौहार, व्रत, उपवास को पूरी रीति नीति से श्रद्धा पूर्वक मनाएं और उसे सम्मान दें और अपनी आने वाली नई पीढ़ी को भी उससे परिचित कराएं।

एक दिए की आरती उतारू गौरी मां
से तिहारी ,
मांगे हुए एक फूल से सिंगारू गौरी मां। हर दिन तेरा ध्यान धरूं ,
कर नित पूजन अर्चन ,
तुझे पुकारू भर दो मेरी झोली ।
जैसे पाया तूने साथ भोले का
हमको भी दे दो साजन का अमर साथ प्यार भरा।
जब तक जिऊं सुहागन जिऊं
जब जाऊं इस दुनिया से ,
जाऊं लाल चुनरिया ओढ़ के।
मां बस यही वर दो मां।

स्वलिखित मौलिक लेख
शब्द मेरे मीत
डाक्टर महिमा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश