Tuesday, July 2, 2024
साहित्य जगत

दिल में समन्दर सा तुफान लिए
कुछ स्मृतियों के धुन गुनगुना रही |
किरणों ने बिखेरा है साज अनहद
सुर लहरी बन तरंगें झिलमिला रही |
वक़्त से पहले वक्त का तकाजा था,कि
आसाध्य सांझ की बेला तुझे बुला रही |
उठ रहीं लहरें कुछ इस तरह कि मानो
वादियों को भी मचलना सिखा रहीं |
उड़ चला मन का पंछी भी अब तो
दिल के टहनियों पर, कुछ ठौर पा रही,|
बिठा कर यादों की कश्ती में हमें
“आर्या “पूरी दुनिया की सैर करा रही|
आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ ( उत्तर प्रदेश)