Monday, January 20, 2025
साहित्य जगत

“तुम लौटे मधुमास गये”

तुम लौटे मधुमास गये,
इन अधरों की प्यास गये।
मुद्दत बीती केश संवारे,
श्वेत बाल मूँछों की काटे।
इक युग बीता,सच कहता हूँ,
आईने के पास गये।।
तारों को अब कौन गिने,
झींगुर की धुन कौन सुने?
हुआ वीतरागी ये मन ,
रंग गये सब,रास गये।।
कौन यहाँ सांकल खटकाये,
डयोढ़ी पर आ दीप जलाये,||
कौन पुकारे आते-जाते,
“ग़ैर “गये सब, खास गये।।
अनुराग “ग़ैर “