Saturday, May 18, 2024
साहित्य जगत

बिखरी हैं यहाँ……

बिखरी हैं यहाँ जाली
पटलों के मुहानों में
संभल के पाँव रखना तुम
फिसल जाये न नाली में

कुएँ का जल बड़ा मीठा
मिले सबको नहीं हरदम
डोर किसकी कहाँ पहुँची
वही डाले सदा प्याली में

दूरी रखना बड़ा मुश्किल
साथ रहना भी है मुश्किल
बचा कैसे कबतक जाये
बताना यार हमें खाली में

 © सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, (उत्तर प्रदेश)