Monday, July 1, 2024
धर्म

जगत के यथार्थ स्वयं श्री हरि -धनुषधारी

बस्ती। महाराज अम्बरीश इक्ष्वाकुवंशीय प्रतापी राजा नाभाग के पुत्र थे । अम्बरीश एक ऐसे राजा थे जो सप्तद्वीप के चक्रवर्ती राजा थे साथ ही श्री हरि विष्णु के परम भक्त भी थे। अम्बरीश के भक्ति से प्रशंन्न हो कर श्री हरि विष्णु ने उनके सुरक्षा हेतु अपने अमोघ सुदर्शन चक्र को लगा रखा था। श्री हरि विष्णु कहते है कि मै भक्तो के आधीन रहता हूं व भक्ति के अनुसार अनुराग रखता हूँ। यह सद विचार बालेडिहा में चल रहे श्रीमद भागवत कथाके दौरान कथा व्यास पंडित धनुषधारी मिश्र ने कही। कथा को गति देते हुए कथा व्यास पंडित धनुषधारी ने भागवतामृत मंदाकिनी के माध्यम से अम्बरीश चरित्र का वर्णन किया इस दौरान मौजूद श्रोता भक्तो ने कथा मंदाकिनी में गोते लगा कर लगातार पुण्य अर्जित कर रहे थे। कथा व्यास पण्डित धनुषधारी मिश्र ने कहा कि राजा अम्बरीश सप्तद्वीपो के राजा होने के साथ साथ बहुत धर्मात्मा व अहंकार से रहित थे। कथा व्यास ने कहा कि आज के भौतिक समय मे किसी के पास यदि प्रभु के कृपा प्रसाद से यदि वैभव आ जाता है तो उसको अहंकार आ जाता है किंतु महाराज अम्बरीश सप्तद्वीपो के स्वामी होने के वावजूद श्री हरि का अनन्य भक्त के साथ साथ उनके समीप कहीं अहंकार नही था। महारज अम्बरीश एकादशी का व्रत भी रखते थे। कथा व्यास पंडित धनुषधारी मिश्र ने कहा कि भगागवत पुराण का यह प्रसंग यह संदेश देता है कि यदि जीव के जीवन मे थोड़ा बहुत कृपा प्रसाद प्राप्त हो तो हमे उसका अहंकार नही करना चाहिए क्यो की जगत में जो कुछ दिखाई पड़ता है वह सब स्वप्न है। यथार्थ तो स्वयं श्री हरि व उनका चरित्र है।