Monday, July 1, 2024
साहित्य जगत

आओ मिलकर जाने !!भाग -1(लोकगीत)

अपने भावों को जनसामान्य जब किसी भी गीत या कविता के माध्यम से लयात्मक ढंग से स्वर माधुर्य के साथ
प्रस्तुत करता है तो वो लोक गीत कहलाता है । लोकगीत मे जन्म से मृत्युपरांत तक की प्रत्येक अवस्था
का वर्णन नीहित रहता हैं।
विरह ,उमंग, हर्ष, मधुर, शांत भाक्ते प्रेम, विरह, श्रृंगार सभी की रसानुभूति होती है।

अगर आप लोकगीत समझते हैं तो आप उस क्षेत्र की संस्कृति और परम्परा को सरलता से समझ सकते है । सामाज के सारे संस्कारो मे लोकगीत विद्यमान रहता है । इसकी उत्पत्ति व विकास उतना ही पुराना हैं जितनी जितना की मानव जीवन।

लोक गीतो की रचना प्राय:
अज्ञात होती है किंतु इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि ‘यह देव योग से प्रकट हुए हो इसका कोई न कोई निर्माता अवश्य रहा होगा | लोकगीतो का निर्माण सामूहिक रीति से ही हुआ है ।
लोक गीत मौखिक परम्परा में जीवित रहते हैं तथा गीत का सृजन करते समय
अपने यह लेखनी से कष्ट एव निष्ठा का प्रयोग करते हैं। मौखिक प्रक्रिया से ही ये लोकप्रिय हो जाते है और पीढी दर पीढी चलते रहते है।
कजरी, सोहर, चैती, लंगुरिया आदि लोकगीतों की प्रसिद्ध शैलियाँ हैं। सीढ़ने गीत विवाह के अवसर पर गाये जाने वाले गाली गीत है।
मुण्डन, पूजन, जनेऊ, विवाह आदि अवसरों पर गाये जाने वाले संस्कार गीत हैं सोहर, खेलौनो कोहबर, समुझ बनी आदि ।
पर्व त्यौहार के गीत: इसके अंतर्गत छठ गीत, तीज, जितिया, करमा, बिहुला – विषहरी आदि के गीत आते हैं।
धार्मिक गीत: इसके अंतर्गत शीतला माता का गीत, प्रभाती, निर्गुण, ग्राम देवता, आदि गीत आते हैं।
लीला गीत: इसके अंतर्गत झुमर और झुलन गीत आते हैं।

लोरी: ये नवजात शिशुओं के गीत आते हैं।
. बाल क्रीड़ा गीत: इसके अंतर्गत खेल गीत आते हैं।

संस्कार गीत के अंतर्गत ‘सोहर’ एक लोकगीत है जो संतान जन्म के शुभ अवसर पर गाये जाने वाले गीत हैं जिसे ‘सोहर’ की संज्ञा दी गई है।
लोकगीत मानव जीवन की अनुभूत अभिव्यक्ति और हृदय के उदगार है तथा जीवन का स्वच्छ और साफ दर्पण भी है, जिसमें समाज के जीवन का प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है। लोकगीत मनुष्य के स्वाभाविक भावनात्मक स्पंदनों में जितना जुड़ा हुआ है उतना वाणी के किसी रूप में भी नहीं। लोकगीत ही लोकजीवन की वास्तविक भावनाओं को प्रस्तुत करता है। इसमें मनुष्य मात्र के पारिवारिक और सामाजिक जीवन का सामयिक तथा भावनात्मक चित्रण रहता है। जीवन के सभी पहलुओं एवं विभिन्न परिस्थितियों में मनुष्य के मानसिक एवं शारीरिक व्यापार जैसे ही होते हैं, उनका यथातथ्य चित्रण लोकगीत में मिलता है। लोकगीत में सामूहिक चेतना की पुकार मिलती है। इसमें जनता के जीवन का इतना विशद चित्रण होता है कि उनमें मूल संस्कृति तथा जनजीवन का पूर्ण चित्रण मिल जाता है। लोकगीतों में हमारी मूल संस्कृति जिसे हम लोकसंस्कृति कहते हैं विरासत के रूप में रखी होती है।

लोकगीतों की विशेषताएँ—
साधारण लोक धुनें चार – पाँच स्वरों में ही मिलती हैं , जो सरलता से गाई जा सकती है ।

लोकगीत लयबद्ध होता है ।

अनेक लोकगीत एक ही धुन में गाए जाते हैं ।

लोकगीतों में प्रायः सरलता मिलती है ।

लोकगीत लोक भाषा में होती है ।

लोकगीत अति विलम्बित लय में नहीं गाए जाते । इससे आनन्द कम हो जाता है ।

लोकगीत की धुनों में सात शुद्ध स्वरों कोमल , गन्धार व कोमल निषाद का विशेष प्रयोग होता है ।

लोकगीतों में अधिकतर सप्तक के पूर्वांग के ही स्वरों का प्रयोग मिलता है । • लोक धुनें एकल उतनी शोभायमान नहीं होती , जितनी सामूहिक ।

लोक धुनें स्वर की अपेक्षा लय प्रधान होती हैं ।

लोकगीत का ध्येय मनोरंजन प्रदान करना

लोकगीत के द्वारा जनजीवन के सभी पक्षों का दर्शन होता है। जनसमाज के अपने गीत होते हैं जिनमें किसी समाज विशेष की जीवनानुभूति की अभिव्यंजना होती है। ये हम सबकी पहचान है और हम सभी के हृदय के निकट है।

संग्रह से निम्नलिखित लाभ या महत्त्व होते हैं : –

कण्ठस्थ साहित्य लिपिबद्ध होकर सुरक्षित रखा जा सकता है । इससे महिलाओं – पुरुषों के मस्तिष्क की महिमा दृष्टिगोचर होती है ।

इन गीतों से वर्तमान कवियों को अत्यधिक लाभ होता है । भावपूर्ण गीतों से भावपक्ष को परिष्कृत करने का अवसर प्राप्त होता है ।

लोकगीतों द्वारा हमें अपने देश और समाज के भिन्न – भिन्न रीति – रिवाजों , रहन – सहन , तीज – त्यौहारों आदि का परिचय प्राप्त होता है ।

लोकगीतों से हमें प्राचीन , इतिहास , घटनाओं , धार्मिक प्रवृत्तियों और तत्कालीन मनोभावों का भी परिचय प्राप्त होता है ।

लोकगीतों के द्वारा सभी रिश्ते भाई – बहनों के पवित्र स्नेह बन्धन , माता – पिता के लाड़ – प्यार , पति – पत्नी के पुनीत सम्बन्ध , परिवारों के मेल – मिलाप , गृहस्थ जीवन के सुख समस्याओं आदि की जानकारी मिलती है ।
लोकगीतों के संग्रह से हमें अपने साहित्य को सुदृढ़ करने का अवसर मिलता है ।
लोकगीतों के संग्रह से हमें गाँवों और शहरों को निकट लाने में सफलता मिलती है ।

अन्त में यह कहना उचित होगा कि लोकगीत न ही तो नया है , न ही पुराना ।
आइये मिलकर इसे संजोकर समय समय पर यादगार और अमिट बनाने का प्रयत्न करते है।

आप सभी का इंतज़ार रहेगा सरिता त्रिपाठी जी के फेसबुक पेज पर इस लोकगीत संध्या कार्यक्रम में जिसमें देश के कोने कोने से सखियाँ लेकर आ रही अलग अलग भाषाओं में लोकगीत। आप सभी जुड़े और सबका मनोबल बढ़ाये।