Wednesday, June 26, 2024
बस्ती मण्डल

जयन्ती की पूर्व संध्या पर याद किये गये महाकवि निराला

बस्ती । शुक्रवार को प्रेमचन्द साहित्य एवं जन कल्याण संस्थान और वरिष्ठ नागरिक कल्याण समिति के संयुक्त संयोजन में कलेक्टेªट परिसर में निराला जयन्ती की पूर्व संध्या पर उन्हें याद किया गया।
मुख्य अतिथि कवि अनुरोध श्रीवास्तव ने कहा कि निराला ने हिंदी कविता को एक नया प्रतिमान दिया और उसे मजबूत बनाया। कहा कि निराला ने महिला अधिकारों की कोई दुहाई नहीं दी, लेकिन इलाहाबाद की सड़कों पर चलते हुए महिलाओं की दुर्दशा को बगैर किसी लागलपेट के जैसे अपनी कविता में पेश किया, वो अद्भुत है. ‘वह तोड़ती पत्थर…देखा उसको मैंने इलाहाबाद के पथ पर’ ये सिर्फ एक कविता नहीं है बल्कि हमारी मरी हुई संवेदना के राजपथ पर अपनी वेदना के गीत सुनाती आधी आबादी की मर्मांतक आवाज है, हम सुनना चाहें तो भी, ना सुनना चाहें तो भी ये हमारे दिलोदिमाग पर दस्तक देती रहेगी।वे युगों तक याद किये जायेंगे।
अध्यक्षता करते हुये वरिष्ठ साहित्यकार सत्येन्द्रनाथ मतवाला ने कहा कि निराला जी के पास जिंदगी की एक ही पूंजी थी, एक ही धन था और वो उनकी बेटी सरोज, लेकिन सरोज की मृत्यु ने इस महाकवि को बिल्कुल अनाथ और अकेला कर दिया. बेटी की यादों में उन्होंने ‘सरोज स्मृति’ लिखी, जो सिर्फ एक बेटी की दास्तां नहीं बल्कि अपने पिता की गरीबी, लाचारी और दुरावस्था की चौखट पर दम तोड़ती हर बेटी की कहानी है। उन्होने कविता को सीधे आम आदमी के सरोकारों से जोड़ा।
वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम प्रकाश शर्मा ने कहा कि निराला जैसे कवि युगों में कभी-कभी जन्म लेते हैं। समाज गरीबी, विपन्नता, बेबसी की चक्की में पिस रहा हो, तब गुलाब से पहले गेहूं की जरूरत पड़ती है, निराला की कविताएं उसी गेहूं के लिए संघर्ष का दूसरा नाम है, जिनको समाज अपना हिस्सा नहीं मानता, जिनके लिए समाज में हाशिए पर भी जगह नहीं होती, उन भिखारियों के लिए निराला की पीड़ा उनकी कविता ‘भिक्षुक’ में उभरती है। पेट और पीठ का एकाकार हो जाना मानव जीवन की भूख और बेबसी की पराकाष्ठा कैसे हो सकती है, इसको निराला की कविता में आप इस कदर महसूस कर सकते हैं कि आपकी हड्डियों में मानों सैकड़ों बिच्छू एक साथ डंक मार रहे हों।
संचालन करते हुये वरिष्ठ कवि डा. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ ने कहा कि राज्य सत्ता कभी जनसत्ता का पर्याय नहीं बन सकती. दूसरों ने इस कर्तव्य का निर्वहन किया या नहीं, लेकिन अपने आचरण और लेखनी- दोनों स्तर पर निराला ने अपना साहित्य धर्म निभाया। वे उनके पीड़ा को स्वर देते रहे जिन्हें लोग सहजता से स्वीकार नहीं करते।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में निराला जयन्ती की पूर्व संध्या पर आयोजित काव्य गोष्ठी में डा. राजेन्द्र सिंह राही, पं. चन्द्रबली मिश्र, नीरज वर्मा ‘ नीर प्रिय’, दीपक सिंह प्रेमी, पंकज कुमार सोनी, सुशील सिंह पथिक आदि ने रचनाओं के माध्यम से निराला जी को नमन् किया। मुख्य रूप से प्रदीप कुमार श्रीवास्तव, ओम प्रकाश धर द्विवेदी, दीनानाथ, रंगीलाल, पेशकार मिश्र, देव व्रत उपाध्याय, विनय कुमार श्रीवास्तव, सन्तोष कुमार श्रीवास्तव आदि उपस्थित रहे।