Sunday, June 9, 2024
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मेरे श्याम

मैं अविरल नदी की धार सी

निर्बाध,धारा प्रवाह बहती,बेकल!
तुममें विलय होने को आतुर!
और तुम समाहित कर.. स्व में,
मेरे महाविलय को प्राणवान कर
अमरत्व की महाबोध को…
प्रतिष्ठापित करते….,
ब्रम्हांड के ओमकार को,
जो निरंकार है, और साकार भी!
प्रकृति के कण-कण में व्याप्त
हर युग के आरंभ से अंत तक
वायु प्राण, अरुण रश्मि,
नीर, अग्नि और अनंत आकाश से,
तुम मुझमें समाहित और मैं!
तुझमें….. मेरे श्याम!!

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)