Saturday, May 18, 2024
विचार/लेख

समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर जयंती

लेख/विचार।भारत महापुरुषों की जन्मस्थली रहा है यहां पर समय-समय पर महान लोगों ने जन्म लिया और समाज को एक नई राह दिखाई। ऐसे ही एक महान समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर थे जिनकी आज जयंती है। वे समाज सुधारक होने के साथ ही प्रसिद्ध विद्वान भी थे। उनके व्यक्तित्व में भारतीय एवं पाश्चात्य विचारों का सुंदर समन्वय था। ईश्वर चंद्र विद्यासागर वैसे नैतिक मूल्यों में विश्वास रखते थे जो मानवता के लिए समर्पित और गरीबों के उद्धार के लिए हो। ईश्वरचंद्र विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर 1820 को बंगाल के मेदिनीपुर जिले के वीर सिंह गांव में हुआ था। ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने अपना पूरा जीवन समाज को सुधारने में और उसकी सेवा में समर्पित किया भारत के पुरुष प्रधान समाज में विद्यासागर महिलाओं की आवाज बनकर उभरे। भारत के पुनर्जागरण के प्रमुख नेताओं में जिसमें राजा राममोहन राय जिन्हें “भारतीय पुनर्जागरण का जनक” और “आधुनिक भारत का निर्माता” कहा जाता है उस समाज सुधार आंदोलन में देवेंद्र नाथ टैगोर ,केशव चंद्र सेन, दयानंद सरस्वती के बीच ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने महिलाओं खासकर विधवाओं के उत्थान और कल्याण के लिए जो काम किए वो उन्हें अन्य लोगों से अलग बनाते हैं।अपनी बहुमुखी प्रतिभा के लिए विश्व प्रसिद्ध ईश्वर चंद्र विद्यासागर संस्कृत के प्रकांड विद्वान भी थे। उनकी विशिष्ट प्रतिभा को देखते हुए अध्ययन काल में ही कोलकाता के संस्कृत कॉलेज ने उन्हें विद्यासागर की उपाधि दी।1850 में वे संस्कृत कॉलेज के प्रधानाचार्य बने उन्होंने संस्कृत अध्ययन के लिए ब्राह्मणों के एकाधिकार को चुनौती दी और गैर ब्राम्हण जातियों को संस्कृत अध्ययन के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने संस्कृत शिक्षा को नया रूप दिया और इसे पढ़ने के लिए नई तकनीक विकसित की बांग्ला भाषा के विकास के लिए उन्होंने काफी काम किया।उन्होंने संस्कृत पढ़ने के लिए बंगला भाषा में वर्णमाला भी लिखा। भारत का रूढ़िवादी समाज जब अंधविश्वासों और तरह-तरह के कर्मकांड में उलझा हुआ था।उस वक्त उन्होंने नारी शिक्षा पर खास जोर दिया उस समय समाज में लड़कियों की शिक्षा को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां थी। इन भ्रांतियों को दूर करने के लिए ईश्वरचंद ने आंदोलन किया।वह घर-घर घूमे तथा लोगों को बेटियों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया यह काम आसान नहीं था। उन्हें कदम-कदम पर विरोध और तिरस्कार झेलना पड़ा। लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की और अपने मिशन में समर्पित भाव से लगे रहे लड़कियों की पढ़ाई के लिए उन्होंने नारी शिक्षा फंड भी बनाया। ईश्वर चंद्र विद्यासागर कम से कम 35 बालिका विद्यालयों से जुड़े हुए थे।जिनमें से कई स्कूलों का संचालन वे स्वयं अपने खर्चे से करते थे।वे यहीं नहीं रुके उन्होंने आदिवासियों के लिए रात्रि पाठशाला भी खोली आदिवासी की लड़कियों के लिए उन्होंने देश का पहला स्कूल भी खोला था। ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने विधवा पुनर्विवाह के लिए एक जोरदार आंदोलन चलाया जिसके फलस्वरूप सरकार ने विधवा पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता दी उन्होंने बहू पत्नी विवाह एवं बाल विवाह का कड़ा विरोध किया 1840 एवं 1850 में स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में चलाए गए उनके सशक्त आंदोलन के फलस्वरुप ही कोलकाता में बेथुन स्कूल की स्थापना हुई और 1849 में वे इसके सचिव भी बने और भारत में स्त्रियों के लिए उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए। विद्यासागर बाल विवाह के भी खिलाफ रहे भारत में बाल विवाह की समस्या प्रारंभ से रही है विद्यासागर ने इसके लिए भी आंदोलन चलाया। 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम को पारित कराने में ईश्वर चंद्र विद्यासागर की मुख्य भूमिका रही इस अधिनियम के तहत विधवाओं के पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान की गई भारत के अंतिम गवर्नर जनरल और भारत के प्रथम वायसराय लॉर्ड कैनिंग के समय यह विधेयक यह अधिनियम पारित हुआ था।1856 में पारित इस कानून से पहले देश में विधवा महिलाओं की जिंदगी आसान नहीं थी बाल विवाह जैसी कुप्रथा वाले दौर में कम उम्र में विधवा हो चुकी लड़कियों की संख्या देश में काफी कि ईश्वर चंद्र विद्यासागर के दयालु हृदय में इस दर्द को करीब से महसूस किया और उन्होंने इस सामाजिक बुराई को दूर करने का प्रयास किया जिसमें वे सफल भी हुए साथ ही उन्होंने अपने बेटे की शादी भी विधवा करने से करा कर समाज के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण दिया जिस प्रकार राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के विरुद्ध अभियान छेड़ कर पूरे देश में समाज सुधार की एक लहर चला दी। ठीक वैसे ही ईश्वर चंद्र विद्यासागर भी उनके पथ पर चलते हुए विधवाओं के जीवन का उद्धार के लिए अपने सामाजिक आंदोलनों से एक नई क्रांति लायी। और अंततः अंग्रेज सरकार ने उनके सुझाव मान लिया और 1856 में विधवा विवाह के पक्ष में कानून भी पारित किया। देश में जब जब महिला सुधारों की बात चलेगी तब तब ईश्वर चंद्र विद्यासागर का नाम सर्वोच्च स्थान पर होगा।

-देवानंद राय