ग़ज़ल
●●●●●●●●●ग़ज़ल●●●●●●●●●●●
किस तरह बताऊं मैं ,अब हाल बेचारे का।
रखता है भरोसा वो, दुनिया से सहारे का।।
संसार मेरा रोशन है चेहरा ए दिलबर से।
क्या काम यहा फिर है उस अर्श के तारे का।।
ये मुल्क़ भला कैसे बढ़ पाएगा यूं आगे ।
सब लूट रहे मिलकर ,जो माल इदारे का।।
उस पार खड़े थे तुम ,इस पार खड़े थे हम।
क्या ख़ूब नज़ारा था दरिया के किनारे का।।
भूखे हैं बहुत बच्चे, रोज़ी भी गई मारी ।
इक दाना नहीं घर में ,संकट है गुज़ारे का।।
बरसात का मौसम है ,तन्हाई का हैआलम।
दिल टूट गया हर्षित, सावन में कुंवारे का।।
विनोद उपाध्याय हर्षित
अध्यक्ष
प्रेस क्लब-बस्ती
मो० 9450558163