Wednesday, June 26, 2024
बस्ती मण्डल

जनविद्रोह दिवस का आयोजन

महुआ डाबर/बस्ती।(विशाल पाण्डेय) क्रांतिवीर पिरई खां स्मृति समिति द्वारा महुआ डाबर जनविद्रोह दिवस का आयोजन किया गया। अंतरराष्ट्रीय वेब संवाद को संबोधित करते हुए शहीद ए आजम भगत सिंह के भांजे प्रोफेसर जगमोहन सिंह ने महुआ डाबर घटना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला। मालसन और थोम्पसन जैसे इतिहासकारों का हवाला देते हुए उन्होंने बताया की ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अवध के इलाके में लागू की गयी ‘महालवारी ज़मीनी बंदोबस्त’ ने इस इलाके के किसानों और रईसों दोनों को बर्बाद कर दिया था क्यूंकि अंग्रेजों का मकसद सिर्फ ज्यादा से ज्यादा लगान वसूलना था, खेती की पैदावार बढाने में उन्हें कोई रूचि नहीं थी। कंपनीराज के शोषण के कारण ही 1857 में अवध में जबरदस्त जनविद्रोह हुआ जिसमें समाज के हर तबके ने हिस्सा लिया। महुआ डाबर बस्ती जिले का एक कस्बा था जहाँ मुर्शिदाबाद में अंग्रेजों के अत्याचारों से तंग आकर रेशम के कारीगर आकर बस गए थे। यह एक संपन्न कस्बा था जिसमे दो मंजिला मकानों की अच्छी खासी संख्या थी और शिक्षित वर्ग की भी ठीक-ठाक उपस्थिति थी। 10जून 1857 के विद्रोह के दौरान महुआ डाबर के निवासियों ने एक नाव पर, जिसमे अंग्रेज सैन्य अधिकारी बैठकर दानापुर जा रहे थे, हमला बोल दिया। जिसमे 6 सैन्य अधिकारी मारे गए थे। बाद में
इसका बदला लेने के लिए अँगरेज़ सिपाहियों ने पूरे के पूरे कसबे को नष्ट कर दिया और एक एक व्यक्ति को फांसी पर चढ़ा दिया. यह घटना भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक अप्रतिम घटना है जो कि आज भी प्रेरणादायक है।

दरअसल वर्ष 1830 में मुर्शिदाबाद को उजाड़ा गया था। उन्होंने यह भी कहा कि अवध क्षेत्र के बस्ती, फैजाबाद जन विद्रोह का मुख स्थल है यहां की जमीनों पर अंग्रेजों को कब्जा था जिसको लेकर क्षेत्र के समझदार लोग इसकी लडाई लड़ी और अपने प्राणों की आहूति दिया था।
प्रोफेसर जगमोहन सिंह ने जोर देते हुए कहा कि साझा संघर्ष के केंद्र महुआ डाबर जनविद्रोह को हमें तीसरी पीढ़ी का कि नहीं हमें हमेशा के लिए याद रखना जरूरी होगा और उस क्रांतिकारी धरती को
को यादगार विरासत को संजोने की जरूरत है।
125 भाषाओं के गजल गायक डॉक्टर गजल श्रीनिवास ने महुआ डाबर में मेमोरियल बनाने, डाक्यूमेंट्री और दस्तावेजी किताब लिखने का प्रस्ताव रखा। जिससे महुआ डाबर का इतिहास को संजोया जा सके। इस मुहिम का सभी ने समर्थन किया। महुआ डाबर के वीरान खंडहरों को निहारने पहुंचे क्रांतिकारी लेखक शाह आलम ने महुआ डाबर के अवशेषों को दिखाकर इसे जल्द संरक्षित करने की वकालत की।

दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े इतिहासकार दुर्गेश चौधरी, प्रोफेसर शमसुल इस्लाम, पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभिषेक आनन्द, शिक्षक रॉबिन वर्मा, क्रांतिकारियों पर शोध करने वाले प्रबल शरण अग्रवाल, रुद्रप्रताप सिंह आदि ने महुआ डाबर के लड़ाके पुरखों को याद किया। प्रोग्राम का संचालन दुर्गेश कुमार चौधरी ने किया। महुआ डाबर में आयोजक आदिल खान, विशाल पांडेय, सुजीत कुमार, नासिर खान, अंकित कुमार, इरशाद आदि ने अपनी भूमिका निभाई।