Saturday, May 18, 2024
बस्ती मण्डल

कार्ड धारकों से लेकर दुकानदारों तक के वितरण में धांधली

बस्ती।सार्वजनिक वितरण प्रणाली के साथ खुला मजाक हो रहा है। जिम्मेदार चाहे जो भी हो पर यह सत्य है, कि उचित मात्रा में पात्रों को राशन नहीं मिल रहा है। वितरण की व्यथा से सभी पीड़ित हैं। चाहे वह राशन कार्ड धारक हो, या फिर सार्वजनिक वितरण प्रणाली का दुकानदार।

ऐसा ही एक मामला बस्ती जनपद के साऊंघाट ब्लॉक अंतर्गत हटवा ग्राम सभा में मिला है। यहां पात्र गृहस्थी के कार्डधारक श्रीमती रीना देवी पत्नी रंजीत के बेटे सुधाकर ने बी एन टी लाइव को बताया, कि उनका कार्ड 6 यूनिट का है। पर कोटेदार शशीकांत पांच यूनिट का ही राशन देते हैं। मुझे हर माह 25 किलो राशन मिलता है। और 5 किलो का राशन कटौती हो जाता है। ऐसा मेरे ही साथ नहीं लगभग 90 फ़ीसदी लोगों के साथ हो रहा है। मामला संज्ञान में आने के बाद बी एन टी लाइव की टीम जब कोटेदार शशिकांत से जानना चाहा, तो कोटेदार ने मोबाइल फोन काट दिया। और वह नेटवर्क क्षेत्र से बाहर हो गया।

क्या कहते हैं जिम्मेदार:–
संतोषजनक उत्तर ना मिल पाने पर टीम ने संबंधित क्षेत्र के आपूर्ति निरीक्षक रामप्रसाद से जानकारी चाहने की कोशिश की, तो उन्होंने टीम को जो बताया वह बेहद घृणास्पद है ।
उन्होंने विपणन गोदाम से निकली हुई बोरी को व्हाट्सएप के जरिए भेजते हुए बताया, कि यह बहुत बड़ी समस्या है।
जिसके निदान के लिए जिला पूर्ति अधिकारी से लेकर सभी उच्चाधिकारियों को अवगत कराया गया है। सभी ने अपने अपने स्तर से समस्या के समाधान का प्रयास भी किया । लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात्र ही रहा।

उन्होंने आगे बताया की कोटेदारों को 30 से लेकर 50 किलो के पैक बोरी ही राशन मिलते हैं लेकिन उनसे रिसीविंग 52 किलो प्रति बोरी के दर से कराई जाती है। उन्होंने कहा कि घटतौली के शिकार कोटेदारों द्वारा कार्ड धारकों को कम राशन देना मजबूरी है। आगे उन्होंने बताया की 52 किलो के रिसीविंग की बोरी में एक 30 किलो 800 ग्राम राशन मिलता है उन्होंने बताया की चित्र में भी प्रेषित एक बोरी विपणन निरीक्षक सदर के यहां से नंदपुर गांव सभा के रवि कांत कोटेदार के यहां पहुंची है ।

इस संदर्भ में विपणन निरीक्षक से बात करने पर आपूर्ति निरीक्षक ने बताया की वे कहते हैं। कि 23 से 30 तारीख तक निकासी होती है। ऐसे में 800-900 कोटेदारों को राशन वितरण करना पड़ता है। सभी को तौल के देना कहां संभव है। इस तरह खाद्यान्न योजना का भ्रष्टाचार अपने चरमोत्कर्ष पर फैल रहा है।