Wednesday, June 26, 2024
साहित्य जगत

भींगी बरसात

 

.भींगी बरसात

 

रिमझिम फुहारों नें आज..
बर-बस तेरी याद दिलाई
इस तपते बदन को
थोड़ी सी शीतलता जरूर दे आई..
लेकिन तेरी यादें !
जब कभी,इस बारिश में
घूमते थें ,हम दोनों..
बाहों में हाथ डाले
मस्ती में चलते थे, हम दोनों
तेरे भीगे बदन से,
भीनीं खुशबू,मुझे खींच लेती थी
मदमस्त होकर तुम…
मुझे बाहों में भींच लेती थी
अंग मचल जाते थे..
शिराएं विकल हो जाती थी
हृदय धौकनी की तरह
चलती सांसे बेकाबू हो जाती थी…
वो बारिश में तेरा मिलना..
और मिलकर सब
भूल जाना दिलों जान को
सुकून दे जाती थी
आज फिर वही बारिश है..
और तुम कहीं और, मीलो दूर
अपने खिड़की से देखती होगी
वही बूंदें जब तेरे माथे को…
हौले से चूमती होगी..
तो यकीनन तुम्हें..
वो लम्हे याद आते होंगे,
इसी बहाने हम यूं ही…
तेरे पास नजर आते होंगे,

राजीव लोचन द्विवेदी (राहुल)