Friday, July 5, 2024
साहित्य जगत

न्याय का थप्पड़ (कहानी)

रंग विरंगे स्वप्नो के पंख लगाकर जब रिचा अपने ससुराल आयी तो सास-ससुर का अप्रतिम प्यार और दुलार पाकर वह फूली नही समायी। वह परियों की शहजादी सी अपने भाग्य पर इठला रही थी। सुन्दरता उसे देख कर खुद शर्मा रही रही थी, चन्दा जैसा मुखड़ा, हिरनी जैसी आखें, धनुषाकार भौहें और कटि तक फैले केश-सौन्दर्य की साकार प्रतिमा थी रिचा अपनी सुन्दरता से अपने पति देवेश को विमुग्ध कर दिया था। ससुराल में इतना प्यार पाकर वह धन्य हो गयी थी। मां-बाप की लाड़ली दुहिता रिचा को सास-ससुर का इतना स्नेह मिला जिसकी वह कभी कल्पना भी नही कर सकती। रिचा की सास उसे सर आंखो पर लिये रहती। ससुर कहीं से आते तो उसके लिए अमूल्य उपहार लाते। पति देवेश उसके रूप लावण्य पर मर मिटा था। वह अपने प्राणो से बढ़कर रिचा को प्यार करता।
एक दिन रिचा मायके गयी तो दूसरे दिन ही उसका पति देवेश ससुराल पहुँच गया, एकान्त पाकर उसने रिचा से कहा ’’मैं तुम्हे लेने आया हूँ, तुम्हारे बिना मैं एक दिन भी अलग नही रह सकता’’ और माँ की बीमारी का बहाना कर उसने अपनी सास से मिन्नत कर बहू को विदा करा लिया।
रिचा का पति देवश माँ-बाप का इकलौता बेटा था। आलीशान गगनचुम्बी अट्टलिका, करोड़ो, अरवो का बैंक बैलेन्स, धर में सोेने-चांदी, हीरे के अमूल्य जवाहरात, घर में सारी भौतिक सामग्री, हर तरफ से घर में सम्पन्नता ही सम्पन्नता थी। रिचा किसी रानी महारानी से कम नही थी। सास ने पूरे घर की उसे मालकिन बना दिया था। लेकिन विधि की विडम्बना, ये खुशियां ज्यादा दिन तक उसे रास नही आयी। जैसे उसके ऊपर किसी की बुरी नजर लग गयी। एक वर्ष बाद रिचा की सास का देहावसान हो गया और डेढ़ वर्ष बाद ससुर का भी प्राणान्त हो गया। रिचा के ऊपर विपत्तियों का पहाड़ टूूट पड़ा। वह घर में अकेली रह गयी। उसके पति देवेश कीद हीरे जवाहरात की बड़ी दुकान थी। इसी बीच उसने पुत्ररत्न को जन्म दिया, उसका पति जो उसके ऊपर जान झिड़कता था उसकी आंख विभा नाम की एक खूबसूरत युवती से लड़ गयी। विभा ने उसे अपने रूप के आकर्षण में इस तरह आवद्ध कर लिया कि अब वह उसका दीवाना होकर रह गया।
अब रिचा के प्रति उदासीन हो गया। वह घर आता तो खोया-खोया बदहवास सा रहता, रिचा अपने पति के इस परिवर्तन को देख कर हैरान हो गयी किन्तु उसे क्या पता कि उसका पति अब उसे छोड़कर किसी अन्य युवती से प्रेम करने लगा है। वह पति के दुव्र्यवहार से नितान्त चिन्तित हो गयी।
एक दिन देर रात वह घर पहुँचा तो रिचा ने पूछ लिया, अब तक कहां थे, इतनी देर रात घर आये हो?, कुछ दिन से तुम बदले-बदले लग रहे हो, आखिर क्या बात है और तुम्हारे मुख से दारू की दुर्गन्ध आ रही है। देवेश ने कहा रिचा अब जो तुम पूछ रही हो तो मैं तुम्हे हकीकत बताऊँगा, कब तक घुट-घुट कर मरूँगा, मैने शराब पी रक्खी है। अब मैं विभा नाम की लड़की से प्यार करने लगा हूँ। उससे शादी करना चाहता हूँ, तुम मुझे तलाक दे दो और अगर तलाक नही भी दोगी तो भी मैं विभा से शादी करूँगा, उसे घर लाऊँगा। तुम कल घर से निकल जाना, देवेश की बात सुनकर रिचा को लगा कि जैसे उसके शरीर पर कोई सैकड़ो सूइयां चुभो रहा है। वह तिलमिला उठी, पति के दुव्र्यवहार ने उसे आहत कर दिया। उसकी आखों के सामने अंधेरा सा छा गया। रोष भरे स्वर में उसने कहा तुम मेरे जीते जी ऐसा नही कर सकते, तुम्हे शर्म नही आती, पांच वर्ष का लड़का हो गया है, बच्चे पर भी दया नही आती। तुम ऐसा घिनौना काम करोगे, ऐसा सोचा तक नही था। क्या कमी मेरे भीतर है। किससे कम खूबसूरत हूँ मैं। तुम्हें कम प्यार देती हूं क्या?, देवेश आगबबूला हो गया और और उसने निर्ममता से पत्नी को भरपूर पीटा।
रिचा की सारी खुशियां वेदना में तब्दील हो गयी। तीन दिन के बाद देवेश ने विभा से विवाह कर लिया, वह विभा को लेकर घर गया। रिचा गिड़गिडाती रही पर उसने धक्के दे कर उसे घर से निकाल दिया। अब वह अपने बच्चों को लेकर मायके आ गयी। बहुत पहले उसके मां बाप अनन्तलोक की यात्रा पर जा चुके थे। मायके में केवल भाभी और भाई थे लेकिन भाभी की बीमारी ने भाई को आर्थिक दृष्टि से जर्जर बना दिया था।
रिचा ने अदालत का दरवाजा खटखटाया, मुकदमा कायम किया लेकिन गरीब की फरियाद को सुनने वाला कौन है। जब वह अदालत में पहुँची तो उसके पति देवेश के वकील ने रिचा को जोरदार थप्पड़ मारते हुए खलनायक के मुद्रा में बोला मुकदमा वापस ले लो, वरना तुम्हारी भी जान जायेगी और तुम्हारे बेटे की भी जान जायेगी। बेवस होकर रिचा ने जज साहब के पास पहुँच कर अपनी सारी आपबीती सुनायी पर जज साहब ने उसे अनसुना कर उसे अदालत से बाहर जाने का निर्देश दिय। देवेश ने पैसे के बल पर सबको खरीद लिया। यहाँ तक उसने न्याय भी अपने पक्ष में करा लिया।

रिचा अपने पति के पैरो पर गिरती हुई गिड़गिड़ाई, मुझे अपना प्यार मत दीजिए, मुझे कुछ नही चाहिए केवल अपने बेटे को अपनी प्रापर्टी का आधा हिस्सा दे दीजिए। पर देवेश कठोर मुद्रा में बोला आधा क्या, एक इंच नही दूंगा। हमारी प्रापर्टी का हिस्सेदार विभा का बेटा बनेगा, तुम्हारा बेटा नही। रिचा ने कहा यह भी तो तुम्हारा ही बेटा है, ऐसा अन्याय न करो। पर देवेश को लेकर विभा वहां से रफ्फू चक्कर हो गयी।

रिचा आंखों में आंसू लिए अज्ञात दुर्गम पथ पर चल रही थी, सामने महिला सशक्तिकरण का जुलूस देखकर वह ठिठक गयी, वह जुलूस से कुछ कहती इससे पहले जुलूस ने बेरहमी से उसे रौंद दिया।

 

डॉ राम कृष्ण लाल “जगमग”

आवास विकास कालोनी,

जनपद-बस्ती (उत्तर प्रदेश)