Sunday, July 7, 2024
साहित्य जगत

गाँव की बारात (हास्य कविता)

आज ही रोहित की शादी रचल बा,
बड़ा धूम गउवाँ मा अपने मचल बा।

लोग-बाग़ गउवाँ के घूमत-फिरत हउवैं
लरिका जवान सब बराती चलत हउवैं।

निबरू कहैं हम बराती चलब ना,
निरहू के मौसा औ सिरहू के नाना।

हेंतू, बहेंतू औ सेंतू के काका,
नेवल हम न जैहौं भयल हमरे पाका।

झगरू कहैं न मिलल हमके न्योता,
औ दूल्हा सजत बा बराती का देवता।

लोग सब सजि के बराती चलन लागे,
रघुवर के दादा सुनि खेतवा से भागे।

जाको जो भावै सवारी करन लागे,
चिथरू कहैं हम चलब आगे-आगे।

केऊ मोटरगाड़ी, केउ सइकिल पै बैठें,
केऊ हाथी-घोड़ा, केउ पैदल ही ऐठें।

खेदू कहैं हम वहीँ सबसे मिलबै,
झगरू कहैं हम सबहीं संग चलबै।

मंगरू कै है लंगड़ी घोड़ी सवारी,
गजब वेष-भूसा लगें जस मदारी।

सोनू औ मोनू चले बैठि गाड़ी,
गंगू मुस्कुरा के चढ़े बैलगाड़ी।

नाऊ औ पंडित हो संग में चलत हउवैं,
पंडित के घोड़वे पे दोनों चढ़त हउवैं।

जुम्मन के छींक तबै आइ गइलै,
पंडित कहिन कि शगुन गड़बड़ भइलै।

भगेलू के मूर्छा है रहिया मा आई,
.अरे मोरे बप्पा, अरी मोरि माई।

नउवा कहै कि चलउ फुर्ती-फुर्ती,
औ रहिमन बैठि कै मलन लागे सुर्ती।

तब तक तौ मिरगी बहादुर के आई,
शगुन घुरहू सोचैं बराती न जाई।

दूल्हा कै डोला चलै धीरे-धीरे,
औ पंचम चले है नदी तीरे-तीरे।

केऊ भाँग, गाँजा, केउ चीलम चढ़ावें,
केऊ तन में फुर्ती शराबे से लावैं।

चले ढ़ोल, तबला, मजीरा बजावत,
केऊ गीत बदरी, केउ कजरी सुनावत।

औ गावत बजावत सब पहुंचे बराती,
सुनि अगवानी करने चले तब घराती।

केऊ जैरमी, केउ नमस्ते करत हैं,
केऊ पैलगी, केउ तो गोड्वो धरत हैं।

घड़ी देखैं सोमई अब बारह बजत बाटें,
सिगरे घराती में गुस्सा भरत बाटें।

गणिका की नाच तबै लाग होने,
उधर मूड़ फूटल लगे मंगरू रोने।

हल्ला-गुहार बहुत होन लागे,
औ सुनि के बराती-घराती सब जागे।

केऊ लाठी, डंडा, केउ गुम्मा उठावैं,
औ केहू के ऊपर केउ बरछा चलावैं।

मारत औ काटत, गिरावत चलत हैं,
औ धनवा कै करपी बिछावत चलत हैं।

न केउ काहू पूछें, न केउ काहू चीन्हैं,
भूले सब अपना-पराया न चीन्हैं।

जूझैं नशे मा बराती -घराती,
औ रोवै दुलहिया पकरि दोनों छाती।

एक गुम्मा पंडित के घोड़वा के लागल,
उखुडिया के खेतवा में तब घोड़वा भागल।

नाऊ औ पंडित गिरे गन्ने बीचे,
औ मंगरू दबाने गदहिया के नीचे।

तब नउवा कहै कि गज़ब होइ गै काका,
हम ताक़ी यहरियाँ, वहरियाँ तूँ ताका।

गिरले तब सोनू औ मोनू गड़हिया,
दिहेल फूँकि गंगू टुटहिया मड़इया।

लगी आग फ़ैलन तब गउवाँ मा सारे,
औ गउवाँ जरत बा बुझाओ रे सारे।

गउवाँ बचावन चले जब घराती,
मिला तब लें मौका घर भागे बराती।

केऊ पूरब-पश्चिम, केउ उत्तर को भागा,
औ कंधे पर दूल्हा, दुलहिया लै भागा।

केऊ ऊपर-नीचे, केउ दक्षिण को धावैं,
औ भूले केऊ आपन गउवाँ न पावैं।

तब सब कहैं अब बराती न जइबै,
बिना दाल-सब्ज़ी के रोटी हम खइबै।

रहिमन कहैं कि बचल जान भइया,
औ ऐसी बराती न जाबै रे मइया।

सोचैं सबै कि ग़जब रात रहली,
औ गाँव की बारात रहलि मोरी पहली।

डाॅ कृष्ण कन्हैया वर्मा
प्रवक्ता-हिन्दी
श्री शिव मोहर नाथ पाण्डेय किसान जनता इण्टर कालेज नगर बाजार बस्ती।