Tuesday, July 2, 2024
साहित्य जगत

रोटी की कीमत

रोटी की कीमत

गरीब के उदर
की जठराग्नि
की तपिश को
चांद की शितलता
नहीं कर पाती कम
ना ही बुझा पाती है
उसके पेट की भूख !
उसकी कुक्षि की क्षुधा
तब शांत होती है…
जब उदर में उतरते हैं
कुछ टुकड़े रोटी के…
छप्पन भोग की
लालसा नहीं….
नून रोटी मिल जाए , बस !
तृप्त हो जाए उसकी क्षुधा
गोल या टेढ़ी मेढ़ी
मोटी या पतली..
मिल जाए सूखी रोटी भी
तो, कीमत होती है
उसके लिए,
जो, चौबीस घंटे में
कभी एक बार,
कर पाता है दर्शन
रोटी के,
हां, कीमत होती है
उसके लिए….
जो, बहुत ही,
जद्दोजहद के बाद
खा पाता है, रोटी
दुनिया की सबसे
कीमती चीज है,
उसके लिए…..,,
रात को चांद को
तकता ज़रूर है…
उसे चांद नहीं चाहिए
क्यों कि….
वह सुबह फिर,
लग जाता है… भूखे पेट
जुगाड़ में रोटी के…
वही रोटी, जो हमारे,
तुम्हारे लिए कुछ खास नहीं
हां ,, खास है, उसके लिए
और…. कीमती भी..!!

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)