Saturday, May 18, 2024
बस्ती मण्डल

जब हुसैन का कारवां कर्बला पहुंचा ‘. यजीद के हजारों सैनिक पहले से ही वहां मौजूद थे, जो इमाम से बहुत पहले ही वहां पहुंच गये थे

नगर बाज़ार/बस्ती (शकील खान)नगर बाजार के मदरसा दारुल उलूम सुन्नत नूरुल इस्लाम के प्रांगण में चल रहे। दस दिवसीय हुसैनी आजम कान्फ्रेंस के दूसरे दिन हाफिज गुलाम नबी ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि जब हुसैन का कारवां कर्बला पहुंचा ‘. यजीद के हजारों सैनिक पहले से ही वहां मौजूद थे, जो इमाम से बहुत पहले ही वहां पहुंच गये थे। कर्बला में रहने वाली छोटी जनजाति हुसैन के कारवां के चारों ओर एकत्र हो गई। इमाम हुसैन ने कर्बला में जमीन की कीमत के बारे में पूछताछ की।
कर्बला यानी आज का सीरिया जहां सन् 60 हिजरी को यजीद इस्लाम धर्म का खलीफा बन बैठा। वह अपने वर्चस्व को पूरे अरब में फैलाना चाहता था जिसके लिए उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती पैगम्बर मुहम्मद के खानदान का इकलौता चिराग इमाम हुसैन जो किसी भी हालत में यजीद के सामने झुकने को तैयार नहीं थे।
इस वजह से सन् 61 हिजरी से यजीद के अत्याचार बढ़ने लगे। ऐसे में वहां के बादशाह इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ मदीना से इराक के शहर कुफा जाने लगे पर रास्ते में यजीद की फौज ने कर्बला के रेगिस्तान पर इमाम हुसैन के काफिले को रोक दिया। वह 2 मुहर्रम का दिन था, जब हुसैन का काफिला कर्बला के तपते रेगिस्तान पर रुका। वहां पानी का एकमात्र स्त्रोत फरात नदी थी, जिस पर यजीद की फौज ने 6 मुहर्रम से हुसैन के काफिले पर पानी के लिए रोक लगा दी थी। बावजूद इसके इमाम हुसैन नहीं झुके। यजीद के प्रतिनिधियों की इमाम हुसैन को झुकाने की हर कोशिश नाकाम होती रही और आखिर में युद्ध का ऐलान हो गया। इस मौके पर हाफिज समसुद्दीन, हाफिज गुलाम सरवर, इश्तियाक अहमद, फरीद खान, अफजाल अहमद, मोहम्मद अहमद, बिलाल अहमद, हबीबउल्लाह अंसारी, सदर अब्दुल कलाम, सरवरे आलम, मोहम्मद अकरम, मोहम्मद आजम, सफी मोहम्मद, जर्रार अहमद, मोहम्मद वारिस, जीशान अहमद, जमील अहमद, मिसबाहुद्दीन आदि लोग मौजूद रहे।