कठिन शैली में आसान ग़ज़ल
कठिन शैली में आसान ग़ज़ल——०
हालत हो गई बद से बद.
पिट गई यारों अपनी भद.
यौगिक शब्दों का आरम्भ-
हिंदी -शब्द- कोश में तद.
मर्यादाएं तोड़ के उसने-
पार करी सारी सरहद.
श्रद्धावश आवेग में आके-
हम भी यार! हुए गदगद.
उत्पाद-श्रृंखला का प्रबंधन-
दुनिया में है खाद्य- रसद.
जिसको जरा सहारा दे दो-
वह जाता कंधों पर लद.
पूंजीपतियों की सेवा में-
देश के हो गये खाली मद.
मालिकों की बल्ले-बल्ले-
मजदूरों की दशा दु:खद.
अपने जीवन में गरीब की-
सदा किजिए आप मदद.
दूर भी रहके हम जीवन में-
तुझ से रहे सदा आबद्ध.
हर्षानन्द से खाली हो गए-
चित्त के बहु-उद्वेगी मद.
दूर देश को माल ये जाना-
पहले करो इसे आमद.
यू.एस.ए. के आगे यारों!-
सभी देश के बौने कद.
शील-समाधि-प्रज्ञा बल से-
मन की नाद हुई अनहद.
भीम- बुद्ध के प्रयासों से-
मानव-जीवन हुआ सुखद.
कैसे तारीफ करू आपकी-
पास नहीं कहने को शब्द.
खोई-खोई दुनिया केवल-
ढाई -आखर -प्रेम में मद.
कफ-वात व पित्त दोषों में-
बहुत कारगर है बरगद.
दूर रहे हैं सुविधाओं से-
पिछड़े हुए सदा जनपद.
आश्वासन दे कर झूठों ने-
सच की पिटवा दी है भद.
देश में अबतो मजलूमों पे-
सत्ता बन छाई कामद.
घटनाओं से आच्छादित हो-
प्रवृति बन गई आपद.
सफल वही है इस दुनिया में-
छवि हो जिसकी अति विषद.
हिटलर -शाही ये सत्ता तो-
पार कर गई सारी हद.
स्टांक -मार्किट का सुप्रीमो-
बेताज -बादशाह था हर्षद.
आप हमारे हो जानेमन-
मृदुल- भाषी प्रियं- वद.
घर कैसे जाये कोहरे में-
रेल सभी हो गई हैं रद.
इतना सबकुछ होने पर भी-
शांत रही अपनी संसद.
लिखदी है तहरीर वक्त की-
आप को ताकि रहे सनद.
डॉ सुरेश उजाला
लखनऊ(उत्तर प्रदेश)