Sunday, June 30, 2024
साहित्य जगत

गुब्बारा

मेम साहब! मेम साहब !
गुब्बारा खरीद लिजिए ना……..।
मैं पलट कर पीछे मुड़ कर देखी तो एक सात-आठ साल का बेहद दुबला-पतला लड़का हाथों में गुब्बरों का गुच्छा लिए हुए खड़ा था।वह मेरी चुन्नी को पकड़ कर खींचते हुए मुझसे गुब्बारे खरीदने का आग्रह कर रहा था। मैं सामने की दुकान से क्लचर खरीद रही थी। मैने उससे कहा- “एक मिनट बेटा! थोड़ा रूक जाओ , अभी लेती हूँ।” मैं सामने दुकान पर बैठी महिला को पचास का नोट पकड़ाती हुई बोली- “ये आसमानी वाला क्लचर दे दीजिए।महिला चालीस रुपए काट कर दश रुपए वापस कर दी। मैं पीछे मुड़ कर देखी ।अभी भी वो लड़का तटस्थ मेरे पीछे खड़ा था, और मेरी ओर उम्मीद भरी नज़रो से देखते हुए बोला- “मेम साहब! गुब्बारा ले लिजिए ना।”
मैने पूछा- “एक गुब्बारा कितने का है?”
उसने कहा- “दश रुपए का “
मैंने दश का नोट पकड़ाते हुए कहा- “तुम ये पैसे रख लो , मुझे गुब्बारा नहीं चाहिए।”
उसने कहा- “नहीं मेम साहब मै ये पैसे यूँहीं नहीं रख सकता , आप को गुब्बारा लेना ही होगा।” उसने झट से गुब्बरों के गुच्छे में से एक गुब्बारा जबरन पकड़ाते हुए बोला आप को लेना पड़ेगा।”
मैं उसे हैरत भरी निगाह से देखती हुई बोली – “लेकिन मैं इसका करूँंगी क्या? तुम ये पैसे रख लो गुब्बारा मुझे नहीं चाहिए।” वो बल पूर्वक गुब्बारा पकड़ा कर हवा की रफ़्तार से मेरी आँखों से ओझल हो गया।मैं विस्फारित नेत्रों से निर्निमेष उस ओर देखती जा रही थी जिधर की ओर वो गया था।दुकान का मालिक मेरी विश्मयता काआंकलन करते हुए बोला- “ये लड़का बिना गुबारे दिए पैसे नहीं लेता ।”
मैं अभी भी अन्यमयस्क अवस्था थी। उसी अवस्था में मैने कहा- “ग्रेट है न ? ये लड़का? अपनी ईमानदारी और स्वाभिमान के चाबुक से मुझे मार कर गया।”

मैं गुब्बारा लेकर एक गोलगप्पे की दुकान पर आई।और गोलगप्पे खाने लगी। तभी मेरे बगल में खड़े चार साल के लड़के के ऊपर मेरी दृष्टि गई।वो भी गोलगप्पे खा रहा था।मैने उससे पूछा- “तुम्हें गुब्बारा चाहिए?”
उसने कहा- “नहीं चाहिए”
मैंने पूछा- “क्यों”
उसने कहा- “नहीं चाहिए”
मैंने कहा- “ले,लो ये तुम्हारे लिए होली का गिफ्ट है “
पास में खड़ी उसकी माँ ने कहा- “ले लो बेटा,लेलो।”
तब जाकर कहीं उस लड़के ने गुब्बारा लिया।
मैं खुश थी कि गुब्बारा लेना व्यर्थ नहीं गया। आज मैने दो बच्चों को खुशी दी एक बच्चे से गुब्बारा लेकर और एक बच्चे को गुब्बारा देकर।मै होली के लिए शॉपिंग करने गई थी।रंग,गुलाल,पिचकारी और कपड़ों के साथ झोले में खुशियों की सौगात साथ ले आई थी।
होली के रंग तो छूट जाएँगे….साथ रह जाएगी ये खुशियों की सौगात जो जीवन पर्यंत यादगार बन मेरे साथ रहेगी….।।

*आर्यावर्ती सरोज “आर्या”*
*लखनऊ (उत्तर प्रदेश)*