Wednesday, June 26, 2024
देशविचार/लेख

नई कर व्यवस्था या पुरानी कर व्यवस्था कौन बेहतर?

-डॉ सीमा यादव

मध्यम वेतन-भोगी वर्ग के मन में बजट-2023 की घोषणा के साथ ही यह प्रश्न कौतुहल का विषय बना हुआ है कि वित्त-मन्त्री श्रीमती निर्मला सीतारमण द्वारा व्यापक बदलाव के साथ घोषित नई कर-व्यवस्था उनके लिए लाभकारी है अथवा बिना किसी बदलाव के साथ चली आ रही पुरानी कर-व्यवस्था उनके लिए बेहतर है l विभिन्न मिडिया संस्थानों द्वारा भी नई कर-व्यवस्था को भारतीय कर-प्रणाली का एक युगान्तकारी परिवर्तन बताया जा रहा है और मध्यम-वर्ग के लिये सामान्यतौर पर लाभकारी बताया जा रहा है l वस्तुतः नई कर-प्रणाली को पिछले वर्ष के बजट के साथ ही प्रस्तुत किया गया था किन्तु भारत के लगभग 03 करोड़ करदाताओं में से मात्र 5 लाख करदाताओं ने ही इसे स्वीकार किया l ज्यादातर करदाताओं ने पुरानी कर-प्रणाली को ही वरीयता दी इसका प्रमुख कारण यह था कि पुरानी कर-प्रणाली बचतकारी प्रवृति वाले वेतनभोगी वर्ग के लिए अधिक लाभकारी थी वे विभिन्न बचतों एवं आयकर रियायतों का लाभ लेकर पुरानी कर प्रणाली में अपनी आय कर देयता को कम कर सकते थे l नई कर-प्रणाली की इन्ही कमियों को देखते हुए इस वर्ष इसमें व्यापक परिवर्तन किये गये हैं साथ ही ITR फाइलिंग में नई कर प्रणाली को स्वतः लागू डिफ़ॉल्ट विकल्प बना दिया गया है जबकि पुरानी कर प्रणाली को अपनाने वाले करदाताओं को कोई राहत नही दी गयी l विशेषज्ञों की राय है कि सरकार की मंशा आने वाले वर्षों में बचत/छूट आधारित पुरानी कर प्रणाली को पूरी तरह से समाप्त करके बचत के स्थान पर निजी उपभोग को प्रात्साहित करने वाली नई कर प्रणाली को पूरी तरह से लागू करना है l सरकार के इस नए दृष्टिकोण का समष्टि आर्थिक गतिविधियों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा l नई कर-प्रणाली के अंतर्गत करदाता के उपभोग ढांचे पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा, एक और जहाँ कर छूट का लाभ न मिलने के कारण गृह-निर्माण, रियल-एस्टेट, बचत व् बीमा योजनाओं में निवेश के प्रति करदाता के रुझान में कमी आयेगी वहीँ दूसरी ओर दुसरे अन्य प्रकार के निजी उपभोग जैसे कार, मोटरसाइकिल, फैशन, टूरिज्म आदि आदि की ओर उपभोक्ता का रुझान अंतरित होने से उद्योग को बढ़ावा मिलने की सम्भावना है l विशेषज्ञों की राय है कि नई कर प्रणाली की उपभोगवादी प्रकृति से प्रोत्साहित होकर करदाता बचत एवं बीमा योजनाओं से व्यापक धनराशि निकालकर उन्हें अन्य वस्तुओं और सेवाओं पर व्यय करेगा जिससे अर्थव्यवस्था में प्रभाव-पूर्ण मांग का सृजन होगा और अर्थव्यवस्था में आय और रोजगार के नए अवसरों का सृजन होगा, साथ ही उद्योग धंधो को बढ़ावा मिलेगा l इसके पूर्व करदाता कर बचाने के लिए अपनी अन्य आवश्यकताओं से समझौता करके अधिक से अधिक मात्रा में बचत और बीमा योजनाओं में निवेश के लिए सोचता था जिससे अर्थव्यवस्था में प्रभावपूर्ण मांग के स्तर पर दुष्प्रभाव पड़ता था l नई कर प्रणाली अर्थव्यवस्था में प्रभावपूर्ण माँग को ‘बूस्ट’ करेगी l वहीँ अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों का एक वर्ग ऐसा भी है जो मानता है कि रियल-एस्टेट और बचत/बीमा उद्योग अर्थव्यवस्था के दो बड़े रोजगारपरक क्षेत्र है, कर प्रोत्साहन न मिलने के कारण नई कर प्रणाली में इन क्षेत्रों को काफी आघात पहुंचेगा l
पुरानी और नई कर-प्रणाली के अंतर को इस तालिका के माध्यम से भी आसानी से समझा जा सकता है l
पुरानी कर प्रणाली में जहाँ कुल 04 टैक्स स्लैब थे वहीँ नई कर प्रणाली में टैक्स स्लैब की संख्या बढाकर 06 कर दी गयी है l करदाता के लिए पुरानी और नई कर-प्रणाली के मध्य चुनाव को वैकल्पिक रखा गया है l करदाता अपनी सुविधानुसार दोनों ही कर प्रणालियों में से किसी भी कर प्रणाली का चुनाव कर सकता है l किन्तु पुरानी व्यवस्था में कोई बदलाव न करते हुए केवल नई कर-प्रणाली को अधिक आकर्षक बनाने का प्रयास स्पष्ट रूप से संकेत करता है कि सरकार पुरानी व्यवस्था से निकलकर नई कर-प्रणाली को पूरी तरह से लागू करना चाहती है l इसके स्पष्ट संकेत वित्त-मंत्री के बजट भाषण से भी मिलते हैं l

नई कर व्यवस्था मूलतः उपभोग प्रधान कर-व्ग्व्स्था है जिसमें मानक कटौती (15 लाख तक रु 50,000 तथा 15 लाख से अधिक पर रु 52500) को छोड़कर किसी प्रकार की कर छूट/कर लाभ अथवा कटौती देय नही है l इस नई व्यवस्था में 7 लाख तक की कर-योग्य आय पर धारा 87A के अंतर्गत टैक्स-रिबेट का प्रावधान है l जिसके कारण रु 7 लाख तक की आय पर शुन्य कर देय है जबकि रु 700001 की आय पर धारा 87A के अंतर्गत टैक्स-रिबेट का लाभ न मिलने के कारण लगभग रु 25000 कर भुगतान करना होता है l
कर अधिभार की अधिकतम दर को 37% से घटाकर 25% कर दिया गया है l पुरानी कर व्यवस्था मूलतः बचत प्रधान कर-व्यवस्था है जिसमें गृह ऋण पर ब्याज (24बी), मकान किराया भत्ता 10(13A), बीमा, NSC, स्कूल फीस, आदि (80C), अतिकिक्त NPS योगदान 80CCD(1B), स्वास्थ्य बीमा (80D), वास्तविक चिकित्सा भुगतान (80DDB), आश्रित चिकित्सा (80DD), शिक्षा ऋण पर ब्याज (80E), अक्षमता कटौती (विकलांगता) (80U), दान (80G), आदि के अंतर्गत कर लाभ का प्रावधान हैl इस व्यवस्था में 5 लाख तक की कर-योग्य आय पर धारा 87A के अंतर्गत टैक्स-रिबेट का प्रावधान हैl

देखा जाये तो दोनों ही कर-प्रणालियों के अपने हानि-लाभ हैं यदि आप बचत प्रधान दृष्टिकोण रखते हैं और मकान किराया भत्ता, बचत योजनाओं 80C, स्वस्थ्य बीमा योजनाओं 80D के साथ गृह ऋण पर ब्याज भुगतान पर कर छूट का लाभ (24B) ले रहे हैं तो बिना किसी परिवर्तन के भी पुरानी कर-प्रणाली ही आपके लिए बेहतर विकल्प है जबकि यदि आप उपभोगवादी दृष्टिकोण के साथ जीवन जीते है और बचत योजनाएं, स्वास्थय बीमा, गृह निर्माण आपकी प्राथमिकता नही हैं तो नई कर प्रणाली कर आपके लिए अधिक लाभकारी है I
नई और पुरानी कर-प्रणाली में अलग अलग आय स्तर पर करदाता पर कर का कितना भार पड़ेगा इसको निम्न तालिका से समझा जा सकता है l इस तालिका में 6 लाख रुपये वार्षिक आय से लेकर 20 लाख रुपये वार्षिक आय प्राप्त करने वाले करदाताओं पर नई और पुरानी कर प्रणाली में पड़ने वाले करभार की गणना मानक कटौती, पुरानी पेंशन से आच्छादित वेतनभोगियों के लिए 80C (अधिकतम 1,50,000 रु) तथा नई पेंशन से आच्छादित वेतनभोगियों के लिए 80C (अधिकतम 2,00,000 रु) तथा गृह ऋण पर ब्याज की छूट (अधिकतम 2,00,000 रु) को सम्मिलित करते हुए आयकर की गणना की गयी है l इस गणना में मकान किराया भत्ता, स्वास्थय बीमा 80D, शिक्षा ऋण पर ब्याज 80E आदि धाराओं के अंतर्गत मिलने वाली कर छूट/कर लाभ को सम्मिलित नही किया गया है l यदि पुरानी कर प्रणाली के अंतर्गत आयकरदाता इन छूटों का अतिरिक्त लाभ लेता है तो उसके द्वारा देय आयकर की राशि में उसी अनुसार और कमी हो जायेगी l

यदि किसी करदाता की आय 7 लाख तक है तो नई और पुरानी दोनों ही कर प्रणालियों में मानक कटौती, (80C बचत, तथा गृह ऋण पर ब्याज में छूट-केवल पुरानी कर-प्रणाली में देय) का लाभ लेने पर कोई कर देय नही होगा l इसी प्रकार यदि करदाता पुरानी/ नई पेंशन व्यवस्था से आच्छादित GPF/NPS धारक हैं और वह मानक कटौती, 80C बचत, तथा गृह ऋण पर ब्याज में छूट का लाभ लेते हुए पुरानी कर-प्रणाली को चुनता है तो उसे 9 लाख रुपये तक की वार्षिक आय पर कोई कर देय नही होगा, जबकि नई कर प्रणाली में उसे 8 लाख रुपये की आय पर रु 31,200 तथा 9 लाख रूपये की आय पर रु 41,600 का कर भुगतान करना होगा l यदि करदाता ने गृह ऋण पर ब्याज में कर-छूट का लाभ नही लिया है और वह NPS आच्छादित है तो 8 लाख रुपये वार्षिक आय पर उसके लिए पुरानी कर प्रणाली बेहतर विकल्प होगी l इसी प्रकार 9 लाख रुपये वार्षिक से आगे के प्रत्येक आय स्तर पर गृह ऋण पर ब्याज में कर-छूट का लाभ न लेने पर करदाता के लिए नई कर प्रणाली बेहतर विकल्प है l लेकिन यदि करदाता मानक कटौती, (80C बचत, तथा गृह ऋण पर ब्याज में छूट-केवल पुरानी कर-प्रणाली में देय) का लाभ लेता है तो प्रत्येक दशा में उसके लिए पुरानी कर-प्रणाली ही बेहतर विकल्प सिद्ध होगी l इस तालिका के माध्यम से अलग अलग आय वर्ग के अंतर्गत आने वाले करदाताओं पर उनकी परिस्थिति के अनुसार नई और पुरानी कर प्रणाली में कितना आयकर देय होगा इसकी तुलना की जा सकती है और करदाता अपने लिए उपयुक्त कर प्रणाली का चुनाव कर सकता है