Friday, July 5, 2024
हेल्थ

पत्नी को तकलीफ में न डाल अजीत ने आगे बढ़कर करवा ली नसबंदी

पत्नी की दो बार हो चुकी थी सर्जरी इसको ध्यान में रखते हुए लिया निर्णय

गोरखपुर। परिवार नियोजन में पुरुष भागीदारी के लिए रेलकर्मी अजीत कुमार गौड़ (33) नजीर बन चुके हैं। उन्होंने साबित किया कि परिवार नियोजन सिर्फ महिलाओं की जिम्मेदारी नहीं है। यह पति का भी दायित्व है कि वह अपनी भागीदारी निभाए। अजीत की पत्नी का प्रसव के दौरान दो बार सर्जरी हो चुकी थी, इसलिए अजीत ने खुद की नसबंदी करवाने का फैसला लिया । नसबंदी के चार माह बाद उन्हें किसी प्रकार की दिक्कत नहीं है और वह खुशहाल जीवन जी रहे हैं ।

अजीत को नसबंदी करवाने के लिए किसी स्वास्थ्यकर्मी ने प्रेरित नहीं किया । यह उनका खुद का निर्णय था । दो बच्चों के बाद ही नसबंदी अपनाने वाले अजीत अपने कार्य के दौरान 50 किलो तक का बोझ भी आसानी से उठा लेते हैं और यह साबित कर रहे हैं कि इससे कोई शारीरिक कमजोरी नहीं आती है। वह नसबंदी के तीसरे दिन ड्यूटी पर आ गये थे ।

अजीत बताते हैं कि उन्होंने 12वीं तक पढ़ाई की है, लेकिन वह छोटे परिवार का महत्व बखूबी समझते हैं। वह बच्चों को अच्छी परवरिश और शिक्षा देना चाहते हैं। उनकी एक बेटी नौ साल की है जबकि दूसरा बेटा सात साल का है । वह दो बच्चों के बाद परिवार नियोजन का स्थायी साधन अपनाना चाहते थे।जब उन्होंने पुरुष नसबंदी का निर्णय लिया तो पत्नी ने भी उनका साथ दिया । उनके मन में पुरुष नसबंदी को लेकर कोई भ्रांति नहीं थी और इसकी वजह यह थी कि उनके जानने वाले ने नसबंदी करायी थी और बुजुर्गावस्था में भी वह फिट हैं, इसलिए अजीत के मन में कोई डर नहीं था ।

पुरुष नसबंदी की सेवा अपनाने में अजीत को कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा । सबसे पहले वह रेलवे अस्पताल में गये जहां उन्हें नसबंदी की सेवा नहीं मिल सकी। फिर वह जिला अस्पताल गये लेकिन वहां भी नसबंदी दिवस न होने के कारण उन्हें सेवा नहीं मिली । इसके बाद वह चरगांवा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) गये और वहां पर भी पहली बार पुरुष सर्जन के न होने के कारण नसबंदी की सेवा नहीं मिल पाई। चरगांवा पीएचसी पर अजीत की मुलाकात स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी (एचईओ) मनोज कुमार और सहायक शोध अधिकारी (एआरओ) रामचंद्र से हुई । दोनों लोगों ने उनका डिटेल ले लिया और आश्वस्त किया कि जिस दिन पुरुष सर्जन सेवा दिवस पर उपलब्ध रहेंगे उन्हें सूचित किया जाएगा । एचईओ और एआरओ नियमित तौर पर अजीत के संपर्क में रहे । 26 अप्रैल 2022 को सेवा दिवस पर अजीत को चरगांवा पीएचसी बुलाया गया।

अजीत बताते हैं कि नसबंदी के समय हल्का सा चीरा लगा और नसबंदी के बाद वह खुद के साधन से घर चले गये । तीन महीने तक अस्थायी साधनों के इस्तेमाल की सलाह मिली थी। तीन महीने बाद रेलवे अस्पताल में शुक्राणुओं की जांच हुई, जिसमें उनकी नसबंदी सफल घोषित की गयी । अजीत का कहना है कि पुरुष नसबंदी महिला की तुलना में काफी सरल और सुरक्षित है । इसे अपनाने से न तो शारीरिक कमजोरी होती है और न ही यौन क्षमता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

*योग्य लाभार्थी करें चुनाव*

पुरुष नसबंदी के लिए कुछ मानक भी तय किये गये हैं जिनके अनुसार उन पुरुषों को नसबंदी की सेवा अपनानी चाहिए जो शादी-शुदा हों और जिनकी उम्र 60 वर्ष से कम हो । उनके पास कम से कम एक बच्चा होना चाहिए जिसकी उम्र एक वर्ष से अधिक हो । पुरुष नसबंदी तभी करवानी चाहिए जब पत्नी ने नसबंदी न करवाई हो । पुरुष नसबंदी कभी भी करवाई जा सकती है । नसबंदी अपनाने वाले लाभार्थी को 3000 रुपये की प्रोत्साहन राशि भी मिलती है।