Monday, July 1, 2024
विचार/लेख

‘अमृत महोत्सव‘ और ‘हर घर तिरंगा’

विश्व भर को अपनी प्राचीनता के गौरव से आकर्षित करने वाली विद्या के देश भारत की जन्म जन्मान्तर की गुलामी सुनिष्चित करने के लिए अंग्रेज शासकों ने ‘‘विद्या‘‘ को हटाकर उस ‘शिक्षा‘ को लागू किया जिसमें ‘नेटिव‘ यानि परतंत्र भारतीय का यदि सर उठे तो यूनियन जैक से सवाल पूछने के लिए नही, बल्कि सिर्फ उसे सलाम करने के लिए। आज तक की किसी भी सरकार में वो स्वाभिमानी रीढ़ की हड्डी नही पाई गयी जो ‘वेस्ट‘ (West) के इस ‘वेस्ट‘ (Waste)को बाहर फेंक कर भारतीय विद्या के बेस्ट (Best) को पुनर्स्थापित कर सके। भारत जिसकी सारी ज्ञान परम्परा ही प्रश्नोत्तर शैली में प्रारंभ हुई है, आज सवालों से बचना चाहता है। पुल, सडके, इमारतें किसी देश के विकसित होने का प्रमाण नही है अपितु मेरी दृष्टि में नागरिकों के बेहिचक सवाल पूछने की आदत और उसके बेहिचक जबाव पाने की संतुष्टि का नाम विकास है। निश्चित रुप से हमें मंथन करना होगा कि हम कितने विकसित हुए है साढ़े सात दशकों में।
आज हमारा देश भारत के 75वें वर्ष में प्रवेश करने पर ‘अमृत महोत्सव‘ मना रहा है और इस कड़ी में देश की सरकार ने ‘‘हर घर तिरंगा‘- कार्यक्रम का आगाज भी किया है। ’हर घर तिरंगा’ आजादी का अमृत महोत्सव के तत्वावधान में लोगों को तिरंगा घर लाने और भारत की आजादी के 75 वें वर्ष को चिह्नित करने के लिए इसे फहराने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए एक अभियान है। ध्वज के साथ हमारा संबंध हमेशा व्यक्तिगत से अधिक औपचारिक और संस्थागत रहा है। स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में एक राष्ट्र के रूप में ध्वज को सामूहिक रूप से घर लाना इस प्रकार न केवल तिरंगे से व्यक्तिगत संबंध का एक कार्य बल्कि राष्ट्र-निर्माण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रतीक भी बन जाता है। पहल के पीछे का विचार लोगों के दिलों में देशभक्ति की भावना जगाना और भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना है।
आदिकाल से वर्तमान समय तक ध्वज पताका या झंडे का इतिहास मिलता रहा है। चाहे वह धर्मग्रंथ हों या सिंधु घाटी व राखीगढ़ी सभ्यता की खुदाई से मिले अवशेष हों। इनमें झंडे का रूप, आकार और इतिहास मिलता रहा है। झंडे का वर्णन संजय ने महाभारत के शांति पर्व और द्रोण पर्व में किया है जिसमें कौरव-पांडव दोनों सेनाओं के ध्वजों का उल्लेख मिलता है। युग और काल कोई भी रहा हो, ध्वज के साक्षात प्रमाण हमें मिलते रहे हैं। उदाहरण के रूप में सतयुग में ब्रह्मा जी की हंस ध्वजा, त्रेता युग में भगवान राम की सूर्य ध्वजा, द्वापर युग में श्रीकृष्ण की गरुड़ ध्वजा या फिर कलयुग में जगन्नाथ मंदिर पुरी में हवा के विपरीत दिशा में रहस्यमय तरीके से लहराता पतित पावन ध्वज। वर्तमान में भी किसी धार्मिक अनुष्ठान का प्रारंभ ध्वजा स्थापना के साथ ही होता है, क्योंकि ध्वज किसी भी कार्य के मंगल, विजय और निर्विघ्न संपन्नता का प्रतीक है और उस धर्म या संस्था की पहचान भी है।
एक देश की पहचान उसके ध्वज, प्रतीक, गान से होती है, जो उसके लिए अद्वितीय है। भारत को स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकय्या ने राष्ट्रीय ध्वज को डिजाइन करके भारत को अपनी विशिष्ट पहचान दी। एक झंडा एक प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है कि देश कैसे देखता है और खुद को पहचानता है। भारत के लिए उसका राष्ट्रीय ध्वज उसके मूल्यों और विचारों का प्रतिनिधित्व करता है। भारत के तिरंगे का एक अनूठा अर्थ है जो परिभाषित करता है कि देश क्या मानता है और इसके लिए प्रयास करता है, शीर्ष पर केसरिया शक्ति और साहस का प्रतीक है, बीच में सफेद शांति और सच्चाई का प्रतिनिधित्व करता है और सबसे नीचे हरा रंग उर्वरता, विकास और भूमि की शुभता का प्रतीक है। अशोक चक्र की 24 तीलियां बताती हैं कि गति में जीवन है और गति में मृत्यु है। वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज पिंगली वेंकय्या के डिजाइन से प्रेरित है।
राष्ट्रीय ध्वज के डिजाइनर और वास्तुकार पिंगली वेंकय्या एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका जन्म 2 अगस्त, 1876 को हुआ था। उनकी 145 वीं जयंती पर, उस व्यक्ति को याद करते हुए जिसने भारत को एक पहचान दी और अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में देश को एकजुट किया। .पिंगली वेंकय्या का जन्म और पालन-पोषण एक तेलुगू ब्राह्मण परिवार में आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के पास भाटलापेनुमरु में एक पिता, हनुमंतरायडू और माता वेंकटरातनमा के यहाँ हुआ था। मद्रास में अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, वे स्नातक की पढ़ाई करने के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गए। उन्हें भूविज्ञान और कृषि का शौक था। वेंकैया न केवल एक स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि एक कट्टर गांधीवादी, शिक्षाविद, कृषक, भूविज्ञानी, भाषाविद् और लेखक थे, जिन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है।
एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है। तिरंगा, दुनिया में हमारी विरासत, परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर की पहचान है। वर्तमान समय में देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, देश के प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदी ने 13 से 15 अगस्त, 2022 तकं जन भागीदारी से, ’हर घर तिरंगा’ अभियान के माध्यम से 20 करोड परिवारों में तिरंगा फहराने का सपना देखा है। तिरंगा पिछले 75 वर्षों से हर देशवासी को एक सूत्र में बॉंधता आया है। ऐसे में हर भारतीय के मन में तिरंगे के प्रति सम्मान और गर्व की भावना दृढ़ होती है। 1921 में महात्मा गांधी का एक लेख ‘‘यंग इंडिया‘‘ पत्रिका में प्रकाशित हआ, जिसमें उन्होंने कहा, ’एक ऐसा राष्ट्रीय ध्वज बनना चाहिए, जिसके लिए सभी धर्मों के लोग अपनी जान दे सकें।’ इस ऐतिहासिक कार्य को आंध्र प्रदेश के महान स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया ने पूरा किया। उन्होंने 30 से ज्यादा देशों के राष्ट्रीय ध्वजों का अध्ययन किया और राष्ट्रीय ध्वज के रूप में तिरंगे का निर्माण किया। 22 जुलाई, 1947 को डॉ0 राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में हुई संविधान सभा की बैठक में तिरंगे को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अंगीकार किया गया। यानी भारत की आजादी के अमृत महोत्सव के साथ ही यह वर्ष ’तिरंगे‘ का ‘अमृत महोत्सव’ भी है।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा। झंडा ऊंचा रहे हमारा।।
सदा शक्ति बरसाने वाला। प्रेम सुधा बरसाने वाला।। वीरों को हर्षाने वाला ।।
मातृभूमि का तन मन सारा। विजयी विश्व तिरंगा प्यारा…
ये पंक्तियां हर भारतीय को उत्साह से भर देती हैं और हर देश्वासी के हृदय में देशभक्ति का जज्बा पैदा कर देती हैं। ये हमारे राष्ट्रीय ध्वज की ताकत भी है और सम्मान भी है। भारत के नेता के रूप में, खिलाड़ी के रूप में, विद्यार्थी और शिक्षक के रुप में और या फिर सरहदों पर खड़े जवान के रूप में, उसके लिए उसकी राष्ट्रीय पहचान तिरंगा होता है। आजादी के बाद भी कितने ही सैनिकों ने इस तिरंगे की खातिर अपना बलिदान दिया है। ’हर घर तिरंगा’ अभियान शहीदों के प्रति हर भारतवासी की एक सच्ची श्रद्धांजलि है। मेरे विचार से इससे जन-जन में भारत गौरव और भारत भक्ति का भाव जागृत होगा। देश के अंतिम छोर पर रहने वाले नागरिक को भी आजादी की 75वीं वर्षगांठ के महोत्सव में भागीदार बनना चाहिए, यही इसका मूल उद्देश्य है। राष्ट्रीय ध्वज को किसी संस्था या सरकार द्वारा मुफ्त में न दिया जाए क्योंकि तिरंगे के प्रति हर जन के मन में सम्मान, स्वाभिमान और स्वामित्व का भाव जागृत होना अति आवश्यक है। केंद्र सरकार ने देश के सभी 1.6 लाख डाकघरों में भी बिक्री हेतु झंडे की व्यवस्था कराई है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज सरकार के ई-मार्केट मार्केटप्लेस पोर्टल पर भी उपलब्ध है। भारत सरकार ने ध्वज की आपति की प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिए विभिन्न ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म, हितधारकों और स्वयं सहायता समूहों के साथ भी करार किया है। इस अभियान की ऐतिहासिक सफलता के लिए ’फ्लैग कोड’ में 26 जनवरी, 2002 के बाद परिवर्तन किया गया है। अब मशीन से बना हुआ कपास, ऊन या रेशमी खादी और पॉलिएस्टर से बना तिरंगा भी फहरा सकते हैं। साथ ही, अब 24 घंटे तिरंगा फहराया जा सकता है। ध्वजारोहण के अलावा इस अभियान में भाग लेने के आभासी तरीके भी हैं। संस्कृति मंत्रालय ने एक वेबसाइट https://harghartiranga.com लॉन्च की है, जहां कोई ’झंडा लगा सकता है और अपनी देशभक्ति का प्रदर्शन करते हुए ’फ्लैग के साथ सेल्फी’ भी पोस्ट कर सकता है। केंद्र सरकार के साथ-साथ सभी राज्य सरकारों और गैर सरकारी संस्थाओं के समन्वय और सहयोग की भावना भी अभिनंदनीय है। 2 अगस्त को पिंगली वेंकैया की 146वीं जन्म तिथि भी है। उनके प्रति जन धन्यवाद करते हुए एक ’राष्ट्रीय ध्वज गीत’ भी जारी किया गया है। आने वाली पीढ़ियों को हम कैसा भारत देंगे? यह प्रश्न भी हमारे सामने है। निश्चित ही हम चाहेंगे कि हमारी आने वाली पीढ़ी सुखी, समृद्ध, शिक्षित, स्वस्थ और सुरक्षित होनी चाहिए, साथ ही, वह भारत के उच्च जीवन मूल्यों की द्योतक भी बननी चाहिए। अब वक्त एक नए युग निर्माण का है, जिसकी शुरुआत स्वतंत्र भारत की 75वीं वर्षगांठ पर की जा सकती है। यदि समय अर्थात शताब्दियों को चार चरणों में विभक्त कर दे तो अन्तिम 25 वर्ष को हम अमृत काल कह सकते है। हम ’अमृत काल’ (अगले 25 वर्ष अर्थात आजादी के 100 वर्ष) में प्रवेश कर रहे हैं। इसलिए 15 अगस्त को तिरंगे के सामने हर नागरिक को नए संकल्प लेने होंगे। वह दृश्य दुनिया को भारत की एकता का संदेश होगा, जब देश के 20 करोड़ परिवार एक साथ नए संकल्पों के साथ अपने-अपने घरों पर तिरंगा फहराएॅगे। इसी दृष्टि से भारत अपनी आजादी के सौ वर्ष अर्थात आजादी के ’अमृत काल’ की ठोस कार्य योजना भी बना रहा है और अगले पच्चीस वर्षों को दूर दृष्टि से अनेक प्रकार की योजनाओं का क्रियान्वयन भी कर रहा है।

-डॉ राजेश कुमार शर्मा