Monday, July 1, 2024
साहित्य जगत

सावन मास के आते ही हर हर महादेव ,बम बम भोले की स्वर लहरियां चहुंओर

गूं ज उठती है कुंवारी कन्याएं सावन के सोलह सोमवार का व्रत अच्छे वर के लिए रखती हैं इसी मास में मनभावन हरियाली तीज भी आती है जिसमें मेहंदी पकवान झूले सभी को और करीब लाते हैं हमारे संस्कृति में सारे तीज त्यौहार कतिपय सभी को जोड़ने और करीब लाने के लिए ही बने हैं। यह ऐसा मास है कि चारों तरफ खुशियां ही खुशियां बिखरी रहती हैं। बेटियां अपने मायके की ओर चल पड़ती है वहां झूला झूलती है मेहंदी रचाती हैं सोलह श्रृंगार करती है ,कजरी गाई जाती है सौभाग्य सूचक हरियाली तीज का उत्सव बहुत ही जोर शोर से मनाया जाता है और मायके का भरपूर आनंद लेती हैं और फलों का राजा आम भी अपनी रवानी पर होता है घर-घर में भोले बाबा का रुद्राभिषेक पूजन भजन कीर्तन का आयोजन होता है नाग पंचमी रक्षाबंधन उत्सव की धूम चारों ओर मची रहती है कौन है जिसे यह पावन मास नहीं प्रिय। प्रकृति चारों ओर निखर के मुस्कुरा रही होती है ।दादुर मोर पपीहा कोयल अपनी मधुर आवाजों से मन मोह लेते हैं। ऐसे में चारों तरफ प्रेम ही प्रेम दिखाई देता है धरती ने मानो धानी चुनर ओढ़ कर धानी श्रृंगार कर लिया हो। इस माह के व्रत और पूजा पाठ का बहुत ही महत्व हैं।

श्रावण मास का महत्व को सरल शब्दों में आप ऐसे समझ सकते हैं कि सारा संसार ईश्वर का रूप है और उस पर जलधारा सावन मास में हो रही है| प्रकृति इस धरती को अभिषेक कर रही है; जल चढ़ा रही है | सावन में हम भी जल चढ़ाते हैं शिव जी के ऊपर | और अपने आप को कृतार्थ समझते हैं कि हम भी इश्वर के हैं | इसी कृत्य के साथ हृदय जुड़ गए, बस यही है सार है। हर महीने का कुछ न कुछ महत्व है ।कार्तिक मास का बड़ा विशेष महत्व है, तो कौन सा मास ऐसा है जिसमें कोई खास त्यौहार नहीं हो हिंदुस्तान में ? सावन-भादो में बारिश होती है, गर्मी से ठंढक मिलती है लोगों को | ऐसे ही मन की अशांति और तनाव , दुख दर्द अनेकों समस्याएँ हैं जिसका निदान ज्ञान का श्रवण करने से सरलता से हो जाता है और मन को ठंडक पहुंचती है| जब ज्ञान का अभिषेक हो मन के ऊपर तो मन शांत होगा ही हृदय को शीतलता प्राप्त होती है | ऐसे ही तपती हुई धरती पर वर्षा होती है, तो धरती को ठंडक पंहुचती है और फल-फूल उगते हैं। पेड़ों में पत्ते-फूल सब लगने लगते हैं| बारिश से सिंचन होता है और प्रकृति फलती फूलती है‌। पानी ही जीवन है और वह जीवन उतरता है धरती पर | पानी के बिना कैसे जीवन हो सकता है ?
श्रावण मने श्रवण | श्रवण मने क्या? जिस महीने में बैठ के हम सब कथाएं सुनते हैं भजन कीर्तन में मन रमाते हैं | ईश्वर का गुणगान सुनते हैं, तो हमारे भीतर भी शांति होती है | इसलिए श्रावण मास की यही विशेषता है| श्रावण मास में, बारिश के मौसम में लोग बाहर नहीं जाते थे | सन्यासियों के लिए भी यही नियम था | वो लोग एक ही जगह पर रुक कर ज्ञान का प्रसार करते थे। इसीलिए इसे चातुर्मास की संज्ञा दी गई है| साधु, सन्यासी, महात्मा एक किसी जगह पर एक गाँव में, किसी शहर में रह जाते थे 4 महीने के लिए | जब वे 4 महीने रहते तो सारे भक्तगण आते, उनकी बातें सुनते | खेतों में भी बारिश के कारण कुछ काम भी नहीं होता । भगवान भजन को सुनकर उसका मनन इस पावन मास की श्रेष्ठतम उपलब्धि है जिसे हम सबको यत्न पूर्वक जरूर हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए।
इस बार सावन माह 14 जुलाई से शुरू होकर 12 अगस्त तक है जिस दिन रक्षाबंधन उसी दिन इस पवित्र मास की समापन तिथि होती है।इस बार 18 और 25 जुलाई एवं 1 और 8 अगस्त को सोमवार पड़ रहा है कुल 4 सावन के सोमवार है इस बार। 12 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा के साथ ही अगले दिन से भाद्रपद महिना शुरू हो जाता है।
सावन मास को सर्वोत्तम मास कहा जाता है। आइए जानते हैं 5 पौराणिक तथ्य कि क्यों सावन है सबस प्रिय पावन मास..

1. मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे। और संसार को कल्याणकारी महामृत्युंजय मंत्र की प्राप्ति हुई थी।

2. भोले बाबा को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भोले बाबा सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान भोलेनाथ अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि सावन मास में ही समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो भयंकर हलाहल विष निकला उसे भगवान भोलेनाथ ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम ‘नीलकंठ महादेव’ पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का ख़ास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए ये समय भक्तों, साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है, जिसे ‘चौमासा’ भी कहा जाता है; तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।
‘शिवपुराण’ में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से भोलेनाथ का अभिषेक करके उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है। इसीलिए उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है क्योंकि वह जन्म से ही प्रसन्न हो जाते इतने भोले हैं।
सर्वप्रथम त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कावड़ यात्रा की थी। माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने के क्रम में श्रवण कुमार हिमाचल के ऊना क्षेत्र में थे जहां उनके अंधे माता-पिता ने उनसे हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की।
बम बम भोले हर हर महादेव की शिव लहरी से चारों दिशाएं गुजरती हैं और आपको सैकड़ों की संख्या में कांवरिया दिख जाएंगे। भोले बाबा के दरबार में जाते हुए।यह कैसे आरंभ हुई इसके बारे में वेदों और पुराणों में कई उल्लेख मिलते हैं।
माता-पिता की इस इच्छा को पूरी करने के लिए श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कावड़ में बैठा कर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया. वापसी में वे अपने साथ गंगाजल भी ले गए।
भगवान परशुराम जी इस प्रचीन शिवलिंग पुरा महादेव का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे। आज भी इस परंपरा का पालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों लोग ‘पुरा महादेव’ का जलाभिषेक करते हैं। गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान नाम ब्रजघाट है।
कारण चाहे जो हो मगर हर एक परंपरा , रीति रिवाज का उद्देश्य केवल मानव जीवन का कल्याण है और एक दूसरे से हमें प्रेम के बंधन से जोड़ना। आइए इस बार इस पावन मास में अच्छा सुनो अच्छा बोले और अच्छा ही करने का प्रयास करें। हर हर महादेव।

शब्द मेरे मीत
©डाक्टर महिमा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश