Sunday, May 19, 2024
हेल्थ

क्षय रोगियों का सहारा बनीं टीबी चैंपियन ज्योति

गोरखपुर। क्षय रोग यानि टीबी कोहरा चुकीं ज्योति साहनी (21) अब टीबी मरीजों के जीवन में आशा की ज्योति जला रही हैं । वह मरीजों के घर जाकर उनको संबल देती हैं । उन्होंने सात मरीजों को ट्रीटमेंट सपोर्ट दिया जिनमें से दो ठीक हो चुके हैं । वर्ल्ड विजन इंडिया संस्था के साथ मिलकर वह इस समय 80 मरीजों का फॉलो अप कर रही हैं । इसके साथ ही स्नातक की पढ़ाई भी कर रही हैं।

ज्योति बताती हैं कि वह 18 साल की उम्र में टीबी की चपेट में आयी थीं । हल्का बुखार, खांसी आना और वजन घटना उनके लक्षणों में शामिल था । उनके एक परिचित की पहले से टीबी की दवा चल रही थी जिसकी वजह से सीनियर लैब ट्रीटमेंट सुपरवाइजर (एसटीएलएस) अरशद से उनकी पहले की जान पहचान थी। जब एसटीएलएस को उन्होंने अपनी दिक्कत बताई तो सहजनवां सीएचसी पर उनकी जांच की गयी । जांच मेंटीबी की पुष्टि होते ही निःशुल्क दवा शुरू कर दीगयी। वह बताती हैं कि दवा खाने में कोई दिक्कत नहीं हुई, न ही कोई प्रतिकूल प्रभाव हुआ। शुरूआती लक्षण आने पर समय से जांच व इलाज शुरू हो जाने से महज पंद्रह दिन में लक्षण आने बंद हो गये लेकिन चिकित्सक की सलाह पर उन्होंने दवा जारी रखा । छह महीने तक दवा पूरा किया । इस दरम्यान पोषण के लिए प्रति माह 500 रुपये की दर से उन्हें छह माह में इलाज के दौरान कुल 3000 रुपये भी मिले ।

ज्योति जब ठीक हो गयीं तो उन्हें सहजनवां सीएचसी से ट्रीटमेंट सपोर्टर बन कर टीबी मरीजों की मदद करने का अवसर मिला । उन्होंने सात मरीजों को दवा खिलाकर उनकी मदद शुरू की । ज्योति की मदद से टीबी की दवा खाकर ठीक हो चुकी रूही (18) (बदला हुआ नाम) ने बताया कि जब उन्हें टीबी हुई तो पहले उन्होंने निजी अस्पताल में इलाज करवाया, लेकिन जब कोई फायदा नहीं हुआ तो परिचित की सलाह पर जिला क्षय रोग केंद्र में दिखाया जहां से उन्हें इलाज के लिए सहजनवां सीएचसी भेजा गया । सीएचसी पर ही उनकी ज्योति साहनी से मुलाकात हुई और ज्योति ने उन्हें बताया कि नियमित दवा खाने और पौष्टिक भोजन लेने से वह छह महीने में ठीक हो गयीं थीं। इससे रूही का आत्मविश्वास बढ़ गया। ज्योति उनको दवा खिलाने लगीं । लॉकडाउन में दवा घर पहुंचाती थीं और काफी मदद की । जब भी रूही निराश होती, ज्योति उनका मनोबल बढ़ातीं। इस तरह रूही भी छह महीने में ही स्वस्थ हो गयीं ।

*भेदभाव चुनौती*
ज्योति साहनी बताती हैं कि टीबी मरीजों की खोज और उनके इलाज में सबसे बड़ी बाधा भेदभाव ही है। टीबी मरीज के परिवार से लोग दूरी बना लेते हैं, इसकी वजह से लोग बीमारी छिपाते हैं। इसका सामना उन्होंने खुद भी किया है। टीबी चैंपियन होने के बावजूद उन्हें इस भेदभाव का डर रहता है । परिवार में मम्मी, पापा और दो भाई हैं। सभी लोगों ने बीमारी के दौरान उनका सहयोग किया है और टीबी मरीजों के लिए किये जा रहे उनके प्रयासों में भी मनोबल बढ़ाते हैं।

*बीच में दवा छोड़ देते हैं लोग*

टीबी मरीजों की मदद के अभियान में ज्योति को सबसे बड़ी चुनौती मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट (एमडीआर) मरीजों से मिल रही है। वह बताती हैं कि दवा के कारण आने वाले चक्कर, मिचली आदि प्रतिकूल असर से लोग दवा छोड़ देते हैं । उनको समझाने के बाद भी वह जल्दी दवा खाने को तैयार नहीं होते हैं । अगर ऐसे मरीजों को गोद लेकर नियमित फॉलो अप किया जाए तो क्षय उन्मूलन में सहयोग मिलेगा ।

*भय भ्रांति से ऊपर उठना होगा*

टीबी मरीज और टीबी चैंपियंस के प्रति भय और भ्रांति के वातावरण को बदलना होगा । मरीज के साथ मास्क लगाकर सावधानी से मिला जा सकता है। कोविड नियमों का पालन करते हुए टीबी मरीज से मिला जाए तो बीमारी का प्रसार नहीं होगा । टीबी का लक्षण दिखने पर बिना भयभीत हुए सरकारी अस्पताल में निःशुल्क जांच करवाएं। नियमित दवा लें और पौष्टिक आहार का सेवन करें। टीबी का इलाज संभव है।