Sunday, May 19, 2024
बस्ती मण्डल

जो ईश्वर से सम्बन्ध जोड़ लेता है जगत उसी के पीछे दौड़ने लगता है

9 दिवसीय पंचकुण्डीय श्री रुद्र महायज्ञ

बस्ती । जिसका जीवन शुद्ध और पवित्र है उसी को भजनानन्द मिलता है। जो पवित्र जीवन जीता है उसे ही ईश्वर का ज्ञान मिलता है। सुनीति का फल धु्रव है। जो नीति के अधीन रहेगा उसे ब्रम्हानन्द प्राप्त होता है। यह सद् विचार राधेश्याम शास्त्री ने अमहट घाट स्थित शिवमंदिर के परिसर में आयोजित 9 दिवसीय पंचकुण्डीय श्री रुद्र महायज्ञ में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन व्यासपीठ से व्यक्त किया।
महात्मा जी ने कहा कि राजा उत्तानपाद के दो रानियां और दो पुत्र थे, राजा को सुनीति नहीं सुरूचि ही प्यारी थी। सुरूचि का पुत्र राजा की गोद में बैठा था धु्रव ने भी पिता से अपनी गोद में बिठाने के लिये कहा। धु्रव को राजा गोद में बिठाये यह सुरूचि को पसन्द नहीं था। राजा ने सोचा की धु्रव को गोद में बिठाऊंगा तो रानी नाराज हो जायेगी। राजा ने धु्रव की अवहेलना की और मुख मोड़ लिया। धु्रव की मां सुनीति ने धु्रव से कहा कि मांगना ही है तो ठाकुर जी से मागो। मैने तुझे नारायण को सौंप दिया है। जो पिता तेरा मुंह तक नहीं देखना चाहता उसके घर पर रहना निरर्थक है। धुव अपनी विमाता से भी आशीर्वाद लेकर वन की ओर चल पड़ा। महात्मा जी ने कहा कि 5 वर्ष के बालक धु्रव को माता सुनीति तप के लिये भेजती है और आज कल की मातायें पुत्रों को सिनेमा देखने के लिये भेजती है।
धु्रव तपस्या का वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा कि बालक माता के दोष के कारण चरित्रहीन, पिता के दोष के कारण मूर्ख, वंश दोष के कारण कायर और स्वयं दोष के कारण दरिद्र होता है। शास्त्री जी ने कहा कि अधिकारी शिष्य को मार्ग में ही गुरू मिल जाते हैं। परमात्मा और सद्गुरू दोनो व्यापक है। सर्व व्यापी को खोजने की नहीं, पहचानने की आवश्यकता है। नारद जी की प्रेरणा से भक्त धु्रव ने वृन्दावन में यमुना नदी के तट पर मधुवन में उपासना आरम्भ किया। भक्त धु्रव ने घोर तपस्या किया और जब देवगण ने नारायण से प्रार्थना किया कि आप धु्रव कुमार को शीघ्र दर्शन दीजिये तो भगवान ने देवो से कहा मैं धु्रव को दर्शन देने नहीं स्वयं धु्रव का दर्शन करने जा रहा हूं। धु्रव को दर्शन देते हुये भगवान ने कहा तू कुछ कल्पो के लिये राज्य का शासन कर इसके पश्चात तुझे अपने धाम में ले चलूंगा। महात्मा जी ने कहा कि परमात्मा जिसे अपना बनाता है शत्रु भी उसकी बन्दना करते हैं। जो ईश्वर से सम्बन्ध जोड़ लेता है जगत उसी के पीछे दौड़ने लगता है। राजा उत्तानपाद ने पुत्र धु्रव को गले से लगा लिया और माता सुनीति को लगा कि आज ही वह पुत्रवती हुई है क्योंकि उसका पुत्र भगवान को प्राप्त करके आया है। धुव्र ने भगवान की शरणागति स्वीकार किया तो भगवान ने उनको दर्शन, राज्य और वैकुण्ठवास भी दिया।
पंचकुण्डीय श्री रुद्र महायज्ञ के लिए वैदिक मंत्रोच्चार के साथ उमाकान्त वैदिक आचार्य एवं आचार्य विवेक त्रिपाठी ने विधि विधान से पूजन कराया। मुख्य रूप से संतोष पाण्डेय, राजेन्द्र तिवारी, विकास त्रिपाठी, वरूण शुक्ल, शुभम मिश्र, शिवेन्द्र, विशाल, अरविन्द त्रिपाठी, धीरेन्द्र शुक्ल, अनूप श्रीवास्तव, पुष्पांग उपाध्याय, हिमांशु शुक्ल, आकाश यादव, प्रांजल उपाध्याय, राजेश उपाध्याय, मानवेन्द्र मिश्र के साथ सनातन धर्म चेतना चैरिटेेबल ट्रस्ट व जीएमसी ग्रुप के अनेक लोग शामिल रहे।