Wednesday, July 3, 2024
बस्ती मण्डल

प्रभु प्रेम में हृदय का द्रवित होना ही भक्ति है- राधेश्याम शास्त्री

बस्ती। ईश्वर के लिए जो जीता है वही सन्यासी है। गोपियाँ ईश्वर के लिए जीती थी इसलिए उन्हें प्रेम सन्यासिनी कहा गया। प्रभु प्रेम में हृदय का द्रवित होना ही तो भक्ति है । कृष्ण कथा में प्राणायाम करने की कोई आवश्यकता नहीं है यह जगत को भुला देती है। मिठास प्रेम में होती है वस्तु में नहीं। स्वाद गोपियों के माखन में नहीं प्रेम में था। यशोदा के हृदय में बसा हुआ कन्हैया जागा है किंतु हमारे हृदय का कन्हैया सोया हुआ है। यह सद्विचार सोमवार को श्री राधेश्याम शास्त्री जी ने हरैया के तिनौता गांव में श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल लीला का रोचक वर्णन करते हुए व्यक्त किया। शास्त्री जी ने कन्हैया के बाल लीला के विविध प्रसंगों, गोपियों के साथ अनुराग, माखन चोरी आदि प्रसंगों का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि जब तक परमात्मा को प्रेम से ना बांधा जाए संसार का बंधन बना रहता है ईश्वर को फल दोगे तो वह तुम्हें रत्न देंगे पाप के जाल से छूटना आसान नहीं है जब तक पुण्य का बल बढ़ता नहीं पाप की आदत नहीं छूटती।शास्त्री जी ने कथा का विस्तार करते हुए कहा कि परमात्मा को बस में करने का सर्वोत्तम साधन प्रेम है । कन्हैया ने कभी जूते नहीं पहने, गायों की जैसी सेवा उन्होंने किया शायद ही कोई कर सके। गाय में सभी देवों का वास है, गाय सेवा से अपमृत्यु टल सकती है। बांसुरी का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि बांसुरी अपने स्वामी की इच्छा अनुसार ही बोलती है इसलिए भगवान की जो इच्छा हो वही बोलना चाहिए।

इस दौरान अम्बिका ओझा, माधव ओझा,मन्टू पाण्डेय,राजमणि पाण्डेय, शिवकांत पाण्डेय,प्रभाकर ओझा,सुधाकर, जगदम्बा,कृपाशंकर, दयाशंकर प्रेमशंकर,रवीश मिश्र,उत्तम, बजरंगी, अंशू,प्रिंशू, विपिन, अम्बेश, अनूप, सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।