जब दिल के समुन्दर में….
जब दिल के समुन्दर में
तूफ़ाँ सा आ जाता है
दरिया के किनारों सा
छू लहर लौट जाता है
तब हृदय की वेदना को
कवि हृदय सरल कर जाता है
शब्दों के वाण बनाकर
उसे कमान चढ़ा जाता है
कुछ को चुभती तीर हृदय में
कुछ को संबल दे जाता है
कुछ को स्वाभिमान सिखाता
कुछ का अभिमान लुट जाता है
आँखों देखी कानों सुनी पर
करता नहीं विश्वास कभी
पर जब चोट हृदय समाती
वह भी सजग हो जाता है
नारी की नारी दुश्मन है
यह भी कहती नारी है
है मगर यह सत्यता भी
कुछ में ही गुरूर नहीं आता है
बनना है इंसा तुमको गर
चढ़ना है शिखर तुम्हें गर
सुनकर समझकर फिर बोलना
वर्ना विवेक मर जाता है
हुई शब्द की बातें जब
सब सखियों ने खूब लिखा
पर एक शब्द की रचना में भी
भाव अलग कर जाता है
हमको है गर खुद पर गर्व
रखना होगा स्वभाव भी नर्म
वर्ना एक पल में यहाँ पर
प्रलय सा मच जाता है
सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
27-04-2922, 13:01pm