Monday, July 1, 2024
धर्म

माहे रमज़ान के तीसरे असरे की आगाज़ और शबे कद्र की ताक रातो पर रोशनी

-शबे कद्र का तोहफा उम्मती मोहम्मदी के लिए खास हैं

बस्ती। हदीस में आया है कि प्यारे रसूल हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवासल्लम ने जब देखा कि मेरी उम्मत वालो की उम्र बहूत कम यानी 60 – 70 साल करीबन होती है जबकि मेरे से पहले नबियो की उम्मतियो की उम्र सैकड़ों साल हुवा करती थी। अगर मेरी उम्मत नेकी में उम्र के हिसाब से बराबरी करना चाहती है तो नामुमकिन था। इससे प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहिवासल्लम को थोड़ा दुख हुआ। इस लिए अल्लाह पाक ने उम्मती मोहम्मदी को माहे रमज़ान का आखरी असरे की 5 खास राते शबे कद्र 21, 23, 25, 27 और 29 वी राते दी। जिसे एक मर्तबा शबे कद्र की रात मिल गयी तो उसे 1000 महीनों से ज्यादा और एक हदीस में आता है 84 साल की उम्र की इबादत से ज्यादा सवाब मिलता है। अल्हम्दुलिल्लाह।
उक्त बातें दारुल उलूम इस्लामियां फैजाने आलम दमया के सदरुल मुदर्रिसीन उस्ताद एजाज़ आलम खान क़ादरी ने आज रमज़ान के दूसरे असरा के अंतिम रोज़ा यानी 20 रमजान के मौके पर तालिबे इल्म व अन्य मोदर्रीस से मुखातिब हो कर कहा।
उन्हीने बच्चो को बताया कि आज मगरिब बाद से 21 वी रात शुरू हो जाएगी। लैलातुल कद्र (शबे कद्र) की ताक विषम राते 21, 23, 25, 27, 29 में पूरी रात इबादत करो। इस रात की फ़ज़ीलत क़ुरान व हदीस में खास तौर से हैं। इस रात में नवाफिल के साथ साथ क़ुरान की तेलावत कसरत से करे क्योंकि क़ुरान करीम इसी पाक माह रमज़ान के शबे कद्र की ताक रातो में नाजिल हुवा था।
इस रात में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त अपने बंदों की गुनाहों को माफ कर देता है। बंदों को चाहिए सच्चे मन से अस्तगफिरूल्लाह पढ़े और गुनाहों से दूर होने का पक्का और सच्चा वायदा अपने रब से और अपने आप से करे। किसी की ग़ीबत मत करे। झूठ से बेहद दूर रहे। ग़ीबत और झूठ कबीरा गुनाहों में से एक है जो शख्स झूठ बोलता है तो रहमत के फरिश्ते उससे एक मील दूर हो जाते हैं। यह बात आप सब अमल करें और दूसरों को भी बताए या जो भी जरिया हो उस जरिये से दीन की बातों को फैलाये।
हदीस में आता है “जो व्यक्ति क़द्र की रात में ईमान और एह्तिसाब के साथ (यानी अल्लाह के लिए नीयत को खालिस करते हुए) इबादत करेगा उसके पहले के पाप क्षमा कर दिए जाएंगे।” इसे बुखारी (हदीस संख्याः 1901) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 760) ने रिवायत किया है। “क़द्र की रात को रमज़ान के महीने के अंतिम दस दिनों की विषम संख्या वाली रातों में तलाश करो।” इसे बुख़ारी (हदीस संख्याः 2017) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 1169) ने रिवायत किया है।
इस मौके पर मास्टर फर्रुख इस्लाम, हाफिज नूर मोहम्मद, मौलाना अब्दुल्लाह अलीमी, मजिबुल्लाह व तमाम बच्चे मौजूद रहे।