Friday, July 5, 2024
धर्म

परीक्षित के द्वारा किया गया प्रश्न मृत्यु के भय से मुक्ति का मार्ग -धनुषधारी

बस्ती। महाराज परीक्षित का जन्म साक्षात धर्म का अवतार था। परीक्षित पाण्डव बन्धु गाण्डीव धारी अर्जुन के पौत्र तथा अभिमन्यु के पुत्र थे । महाराज परीक्षित द्वापर युग के अंतिम धर्मात्मा राजा थे।महाराज परीक्षित ने सर्वप्रथम व्यास पुत्र परम् भागवत संत सुकदेव जी से सप्त दिवसीय भागवतामृत का पान किया और सुकदेव जी से जगत कल्याणार्थ प्रश्न पूंछा कि जिस व्यक्ति की मौत सात दिन में निश्चित हो उसे क्या करना चाहिए। सुकदेव जी परीक्षित के जिज्ञासा को शान्त कर बताते है कि हे राजन जो कुछ होता है वह सब प्रभु नारायण की ही इच्छा से होता है जब व्यक्ति की मौत सात दिन में निश्चित हो तो जीव को नारायण शरणागति कर लेनी चाहिए। उक्त सदविचार बालेडिहा में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में व्यास पीठ से आचार्य धनुषधारी मिश्र ने कही। कथा व्यास धनुषधारी मिश्र ने कथामृत का रसपान कराते हुए कहा कि एक बार महाराज परीक्षित जंगल मे शिकार के प्रयोजन से गये थे सायं का समय था उन्हें प्यास लगी थी तो वे समीक ऋषि के आश्रम में पहुँचे जहां ऋषि ध्यानमग्न थे जिसे राजा कलयुग के दुष्प्रभाव के वशीभूत हो ऋषि को मृत सर्प की माला पहना दी। इस पर ऋषि पुत्र श्रृंगी ने राजा परीक्षित को यह श्राप दिया कि आज के सातवें दिन सांप के काटने से राजा की मृत्यु हो जाएगी। जब ऋषि समीक ने अपना ध्यान समाप्त किया तब वे श्रृंगी द्वारा दिये गए श्राप के निवारण हेतु राजा का मार्गदर्शन किये। परीक्षित के पुत्र महाराज जनमेजय ने सर्प विनाशन यज्ञ का आयोजन किया था। कथा व्यास धनुषधारी मिश्र ने कहा कि भगागवत कथामृत के अमृत पान से जीव मृत्युभय से मुक्त हो जाता है । इस मौके मुख्य यजमान बीना मिश्रा, राजीव मिश्र, जितेंद्र मिश्र, यतेंद्र, ओम प्रकाश मिश्र व समस्त ग्रामवासी मौजूद रहे।