Wednesday, June 26, 2024
धर्म

प्रभु श्रीराम ने वनवास कर जगत का कल्याण किया

9 दिवसीय संगीतमयी श्रीराम कथा

बस्ती । मनुष्य को उसका कर्म ही सुख या दुःख देता है। सुख दुःख का कारण जो अपने अन्दर खोजे वही सन्त है। जीव को अपने कर्म के कारण जन्म लेना पड़ता है और ईश्वर स्वेच्छा से प्रकट होते हैं। कुसंग तो हर किसी को बिगाड़ देता है। कुसंग के कारण ही कैकेयी की मति भ्रष्ट हो गयी और अपने पति दशरथ का अपमान कर कैकेयी ने श्रीराम के लिये 14 वर्ष का वनवास मांग लिया। ‘‘तापस वेष बिसेषि उदासी। चौदह बरसि रामु वनवासी।। यह सद् विचार कथा व्यास स्वरूपानन्द जी महाराज ने नारायण सेवा संस्थान ट्रस्ट द्वारा आयोजित 9 दिवसीय संगीतमयी श्रीराम कथा दुबौलिया बाजार के राम विवाह मैदान में आठवें दिन व्यक्त किया।
श्रीराम वन गमन, केवट प्रसंग आदि के माध्यम से श्रीराम कथा को विस्तार देते हुये वेदान्ती जी ने कहा कि सभी प्रकार की अनुकूलता होते हुये यदि मन किसी विषय में न जाय वही वैराग्य है। वनवास से जीवन में सुवास आता है। प्रभु श्रीराम ने वनवास कर जगत का कल्याण किया। केवट प्रसंग का वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा ‘‘ जासु नाम सुमिरत एक बारा। उतरहि नर भव सिन्धु अपारा।। ’’ केवट भाग्यशाली था कि वह प्रभु के दोनों चरणों की सेवा कर सका। वह पूर्व जन्म में क्षीर समुद में कश्यप था और नारायण की सेवा करना चाहता था किन्तु लक्ष्मी जी और शेष जी ने अनुमति नहीं दिया। आज लक्ष्मी जी सीता बनी है और शेष लक्ष्मण। गंगा पार कराने के बाद केवट ने अगूंठी लेने से बार-बार इन्कार किया तो लक्ष्मण जी उसे स्वीकारने के लिये आग्रह करने लगे, केवट ने कहा मैं और राम एक ही जाति के हैं, मैं अपने भाई से दाम कैसे लूं। मैं लोगों को गंगा पार कराता हूं राम चन्द्र जी संसार सिन्धु के केवट है।
श्रीराम महिमा का गान करते हुये महात्मा जी ने कहा कि राम तो परमानन्द स्वरूप है। जो उनका स्मरण करते हैं उन्हें दुख नहीं होता। विभिन्न प्रसंगो के क्रम में महात्मा जी ने कहा कि जीवन में कुछ नियम होने चाहिये। जिसके जीवन में कुछ शुभ संकल्प नही है वह पशु से भी अधम है। श्रीराम का वनवास में जगत के कल्याण का हेतु है। ‘‘जिनके कपट दम्भ नहीं माया। तिनके हृदय बसहु रघुराया।। महात्मा जी ने कहा कि लक्ष्मण वैराग्य है, सीता जी परा भक्ति का स्वरूप हैं, राम परमात्मा है। जब भी संकल्प करो, शुभ ही करो।
श्रीराम कथा के आठवे दिन कथा व्यास का विधि विधान से मुख्य यजमान संजीव सिंह ने पूजन किया। आयोजक बाबूराम सिंह, प्रेमशंकर द्विवेदी, राकेश पाण्डेय, नर्वदेश्वर शुक्ल, मस्तराम सिंह, अनिल सिंह, प्रवीन त्रिपाठी, प्रीत कुमार शुक्ल, दयाराम सोनकर, शिव प्रसाद पाण्डेय, विजय नरायन पाण्डेय, अमर जीत सिंह, जय प्रकाश, नरेन्द्र गुप्ता, सत्यवान सोनी, राम कुमार, रन बहादुर यादव, जितेन्द्र सिंह, श्रीराम, हरिश्चन्द्र पाण्डेय, गंगासागर पाण्डेय, राजेश सिंह, कृष्णदत्त द्विवेदी, सुनील सिंह, अनूप सिंह, जसवंत सिंह, रामू, पंकज सिंह, कमला प्रसाद गुप्ता, राधेश्याम मिश्र, सत्यनरायन द्विवेदी, राजेश सिंह, दयाराम, रामकुमार अग्रहरि, गोरखनाथ सोनी, अजय सिंह, अरूण सिंह, भारत सिंह, डा. वी.के. मलिक, महिमा सिंह, विभा सिंह, इन्द्रपरी सिंह, शीला सिंह, सोनू सिंह, हर्षित,वर्धन, दीक्षा सिंह के साथ ही बड़ी संख्या में क्षेत्रीय नागरिक श्रीराम कथा में शामिल रहे।