Tuesday, July 2, 2024
साहित्य जगत

खुद से खुद का आकलन करती हूँ मैं कवयित्री हूँ

लखनऊ। मैं कवयित्री हूँ…. जी हाँ यही शीर्षक है हमारे कार्यक्रम का, कितना अनोखा और आकर्षक है न, क्या आपको भी कुछ अलग लगा तो आइये जुड़िये आप सभी कवयित्रियां इस अनूठे कार्यक्रम में जिसका खूबसूरत आगाज हो चुका है युवा कवयित्री सरिता त्रिपाठी जी के फेसबुक पेज पर I इस कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन कर रहीं है सिवनी मध्यप्रदेश से हम सभी की प्यारी बहन कवयित्री अपर्णा दुबे जी जो कि एक जानी मानी लेखिका, गायिका एवं मंच संचालिका हैं I इस कार्यक्रम का पहला एपिसोड बहुत ही उत्कृष्ट रहा जिसमें प्रतिभाग किया गोवा से प्रसिद्ध लेखिका, कवयित्री एवं चित्रकारा डॉ अपर्णा प्रधान, भोपाल से सुप्रसिद्ध लेखिका एवं कवयित्री वीणा शर्मा ‘सागर’, राजनांदगांव से खूबसूरत कवयित्री एवं संचालिका अर्चना जैन, लखनऊ से कवयित्री एवं गायिका प्रीति पांडेय एवं मंच व्यवस्थापिका लखनऊ से सरिता त्रिपाठी जी ने I

शीर्षक का उद्गम अपर्णा दुबे जी का कविता में तल्लीनता प्रदर्शित करता है, जिस तरह से उन्होंने कहा हम स्त्री पहले हैं पर हम अलग हैं बाकी सभी से क्योंकि “मैं कवयित्री हूँ”, जी हाँ अपर्णा जी तभी तो आप इतना सोच पायी और सभी कवयित्रियों को एक विषय दिया कविता लिखने का और खूबसूरत मंच सजाया उनसे कविता पढ़वाने का I सभी के भाव और उनकी अभिव्यक्ति काबिलेतारीफ रही और सबने बहुत ही आनंदमय होकर एक दूसरे को सुना एवं उत्साहवर्धन किया I दर्शकों के लगातार टिप्पणी मिल रहे थे उन्हें भी मौका चाहिए और सभी के प्यार एवं चाह खातिर अपर्णा जी लेकर हाजिर होंगी हर हफ्ते “मैं कवयित्री हूँ” कार्यक्रम सभी बहनों के लिए सरिता त्रिपाठी जी के पेज पर I
यूट्यूब लिंक https://youtu.be/cz8xFW6YEw0
फेसबुक लिंक https://fb.watch/bX-XuTVowM/
आप सभी जुड़े श्रोता बनकर और जो लिखती हैं बहने प्रतिभागी बनकर एवं अपने भावों को एक दूसरे से साझा करें I इस कार्यक्रम के दर्शनार्थी रहे डॉ पुष्पा सिंह जी, राजीव जी, अजय जी, रिमझिम जी, अंजली जी, राजेन्द्र जी, के यस मिश्रा जी, सर्वेश जी, सूर्यकान्त जी, करनाल जी, मंजू जी, अमरजीत जी, सुधीर जी, कमलेश जी, प्रियांशु जी, राकेश जी, सुभाष जी, पुष्पा ठाकुर जी, शशिकला जी, डॉ महिमा जी. मीरा जी, अमित जी, इत्यादि। आप सभी का इंतज़ार रहेगा आगामी एपिसोड में
इंतज़ार करती हूँ इकरार करती हूँ
मुलाकात का हर इंतज़ाम करती हूँ
कुछ क्षण गर देर हो भी गयी तुझको
खुद से मिलकर भी मैं एहसान करती हूँ
मैं कवयित्री हूँ।

सरिता त्रिपाठी