काव्य संग्रह “संगिनी” की समीक्षा – सरिता त्रिपाठी
पुस्तक का नाम *संगिनी*
लेखक *सुनील जोशी*
समीक्षिका *सरिता त्रिपाठी*
रेटिंग 5/5
आज मुझे आदरणीय सुनील जोशी भईया की पुस्तक “संगिनी” कविता-संग्रह उनके आशीर्वाद के साथ प्राप्त हुई। मन आतुर था उनके द्वारा रचित संगिनी में समाहित सभी कविताओं को तुरंत पढ़ लेने को पर उससे पहले पुस्तक के आवरण ने ही भाव विभोर कर दिया। जैसा कि पुस्तक के शीर्षक से ही ज्ञात होता है, प्रिय भाभी जी ही इसकी नायिका हैं और नायक ने खुबसूरती के साथ अपने अंतर्मन के भावों को नायिका तक मूक होकर पहुँचाया है और सृजित शब्दों को उन्हीं को समर्पित किया है। 25 कविताएँ उनकी प्रथम पुस्तक के प्रथम संस्करण में मोतियों की माला जैसी पिरोयी गयी है और हर मोती अपने आप में अनमोल है।
उनकी प्रथम कविता संगिनी को पढ़कर दो जीवों के बीच भावनात्मक प्रवाह उसी प्रकार प्रतीत होता है, जिस प्रकार तुलसीदास जी ने जीवों की संवेदना
“हे! खग मृग हे मधुकर श्रेनी
तुम देखी सीता मृगनैनी”
में व्यक्त किया है।
रचना “अभिलाषा” में कवि ने जीवन साथी के मनाभावों को किस प्रकार महत्व देना है, का सचित्र वर्णन किया है।
जीवन साथी का महत्व, आशा, विश्वास, लगन का सुंदर एवं मनमोहक वर्णन “तेरा श्याम कहलाऊँ” नामक कविता में किया है।
धैर्य के प्रतिमूर्ति जीवन साथी के लिए कोई भी कष्ट उठाने के लिए तैयार संगिनी का सांकेतिक चित्रण एवं चंद्रमा का उसके साथ आँख मिचौली करना “आज का चंद्रमा” में बहुत सुन्दर तरीके से वर्णित किया है।
प्राचीन काल में जब संचार माध्यम नहीं थे और पति परदेश में रोजगार की तलाश में जाता था और पत्नी दिन महीने साल उसकी प्रतीक्षा करती रहती थी, इसकी सुन्दर शिल्प कला कोणार्क के मंदिर में उकेरा गया है, “प्रियतम आने वाले हैं” उसकी साहित्यिक पुनरावृत्ति है, रचना बहुत ही मनमोहक है।
मन की चंचलता अवस्था पर किस प्रकार हावी हो जाती है जब हम अपने मनाभावों को प्रकट करने के लिए सभी सामाजिक बंधनों से ऊपर उठ जाते हैं एवं जीवन की तरुण और युवा अवस्था में लाख सामाजिक बंधनों की बावजूद नायक अपने नायिका को मन की बात कह ही देता है ये जो शीर्षक “ये जो इश्क है न” को सार्थक करता है।
“लक्ष्मण-उर्मिला संवाद” एक और अनमोल मोती जो त्याग, समर्पण, परमार्थ, विरह, सेवा जैसे कई भावों को एक साथ समेटे हुए है। सच में अद्भुत रचना है।
क्या कहूँ हर मोती अनमोल है, सच में यह कविता संग्रह एक बालक, तरुण, युवा और वृद्ध का उसके संगिनी के साथ बिताये गये पल पल का काव्य विवरण है। मीठा बहुत पसन्द है मुझे, “टाल देती हो बात को”, “तोहरे आने से ” जैसे शीर्षक की पंक्तियाँ मन को बहुत गुदगुदाती हैं।
अंत में नायक ने जो संदेश दिया है
“स्त्री ही नहीं तुम संस्कार हो,
जीवन को समेटे एक परिवार हो”
सच में स्त्री की बहुत ही सटीक परिभाषा है।
इतने उत्कृष्ट संग्रह के लिए आपको साधुवाद एवं आपकी पुष्टि के लिए आपको बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।
इस पुस्तक के सफल प्रकाशन के लिए कोटि-कोटि बधाई एवं अविचल प्रकाशन को बहुत बधाई।
तो दोस्तों देर किस बात की आप भी पढ़िये एक से बढ़कर एक पंक्तियाँ किताब “संगिनी” से आज ही मंगाईये, अविचल प्रकाशन, ऊँचापुल, हल्द्वानी-२६३१३९, उत्तराखंड से, email: avichalprakashan@gmail.com
सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश