Sunday, July 7, 2024
साहित्य जगत

माघ की घनघोर कुहासे…

माघ की घनघोर कुहासे ,ले आईं कुछ यादें
बांसंती सुरभित हवाओं संग आईं सौगातें।

अनजानी,अनबूझी पहेली सी स्वप्निल ये बातें
कोहरे की चादर ओढ़े, भीगी नर्म ये रातें।

कह जातीं जाने- अंजाने कितनी मीठी बातें
अंतर्मन में जाने कितने अनछुए अहसासें।

मौन-मुखर हो मचल रही सुप्त कई जज़्बातें
कूज रही कोकिल उपवन में ,मन मयूर भी नाचे
अधरों पर आ ठहर गई ज्यों, ओस कोई मुस्काते।।

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)