Saturday, May 18, 2024
साहित्य जगत

तेरे प्रेम में

तेरे प्रेम में …!
दिन घटते रहे,
बढ़ते रहे…।
लेकिन!प्रेम..!
सिर्फ बढ़ता रहा।

तेरे प्रेम में….
मैं !जलती रही,
घुलती रही
तपती रही,
लेकिन! प्रेम ..!
सिर्फ बढ़ता रहा।

तेरे प्रेम में….!
आशाएं बढ़ती रहीं
आरजूएं पलती रहीं
उम्मीद ढलती रहीं
लेकिन! प्रेम …!
सिर्फ बढ़ता रहा।

तेरे प्रेम में….!
कई बार टूटी…!
टूट कर बिखरती रही
लेकिन! प्रेम…!
सिर्फ बढ़ता रहा।

तेरे प्रेम में….
मैं कली की तरह
खिलती रही…
खुशबू बन
बिखरती रही
लेकिन! प्रेम..!
सिर्फ बढ़ता रहा।

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)