Sunday, July 7, 2024
बस्ती मण्डल

मनुष्य शरीर परमात्मा के प्राप्ति का साधन है-श्रीमती रुकमणी आर्य

बस्ती। आर्य समाज नई बाजार बस्ती के तत्वावधान में वेद प्रचार के अवसर पर पंचम दिवस के कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रदीप कसौधन के नेतृत्व में लोहिया नगर बस्ती में वैदिक यज्ञ से हुआ।

जिसमें विद्वानों द्वारा आमजनमानस को श्रावणी त्योहार के बारे में बताते हुए भजन व उपदेश के माध्यम से अपनी वैदिक संस्कृति को अपनाने का संदेश दिया गया। सायंकालीन कार्यक्रम स्वामी दयानंद विद्यालय में आयोजित किया गया इस अवसर पर कर्म फल विषय पर उपदेश देते हुए बाराबंकी से पधारे आचार्य सुरेश जोशी जी ने कहा कि कर्मों का फल कब कैसा कितना मिलता है यह जिज्ञासा सभी धार्मिक व्यक्तियों के मन में होती है। कर्म फल देने का कार्य मुख्य रूप से ईश्वर द्वारा संचालित व नियंत्रित है। वही इसके पूरे विधान को जानता है मनुष्य इस विधान को कम अंशों में व मोटे तौर पर ही जान पाया है। ऋषियों ने अपने ग्रंथों में कर्म फल की कुछ मुख्य मुख्य महत्वपूर्ण बातों का वर्णन किया है सकाम कर्म व निष्काम कर्म के अनुसार ही कर्म फल प्राप्त होते हैं। जो लौकिक फल को प्राप्त करने की इच्छा से किए जाते हैं उन्हें सकाम कर्म कहते हैं तथा ईश्वर तथा मोक्ष की प्राप्ति की इच्छा से किए जाने वाले कर्मों को निष्काम कर्म कहते हैं। सकाम कर्मों से मिलने वाले फल तीन प्रकार के होते हैं आयु जाति और भोग जाति के संदर्भ में आचार्य जी ने बतलाया की इस जन्म में किए गए कर्मों का सबसे बड़ा महत्वपूर्ण फल अगले जन्म में जाति अर्थात शरीर के रूप में मिलता है इसे मनुष्य पशु पक्षी कीट पतंग आदि शरीरों को जाति के रूप में जाना जाता है। यह जाति भी अच्छे व निम्न स्तर की होती हैं मनुष्य में पूर्णांग सुंदर कुरूप बुद्धिमान मूर्ख आदि। पशुओं में गाय घोड़ा गधा सूअर आदि। आयु की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने कहा कि आयु जीवन काल के रूप में प्राप्त होता है। मनुष्य की आयु सामान्यतया सौ वर्ष गाय घोड़ा पशुओं की पच्चीस वर्षों तोता चिड़िया आदि पक्षियों की दो से चार वर्ष मच्छर मक्खी भंवरा तितली आदित्य पतंगों के कुछ दिन व मास की होती है। मनुष्य अपनी आयु को स्वतंत्रता और पुरुषार्थ से एक सीमा तक बड़ा घटा भी सकता है कर्मा से के कर्मों के फल ही भोग के रूप में प्राप्त होता है इस जन्म में दुखों से बचने तथा सुख को प्राप्त करने के लिए तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए हमें सदा शुभ कर्मों को ही करते रहना चाहिए और उनको भी निष्काम भावना से करना चाहिए।

भजनोपदेशिका श्रीमती रुकमणी आर्य जी ने कहा कि मनुष्य शरीर परमात्मा के प्राप्ति का साधन है अतः लक्ष्य प्राप्ति के लिए लंबी आयु का प्राप्त होना अच्छा है। आयु की प्राप्ति भी जीवात्मा को कर्मानुसार होती हैं परमपिता परमात्मा जन्म के साथ ही आयु व भोग भी निश्चित कर देते हैं इस विषय में महर्षि पतंजलि ने कहा है कि कर्म संस्कार रूप मूल के रहते उसका फल तीन रूपों में होता है जाति अर्थात जन्म धारण करना आयु प्राप्त करना वह भोग ग्रहण करना इस आधार पर विदित हुआ कि जन्म के साथ ही आयु व भोग भी निश्चित होकर आते हैं। मानव जन्म को पाकर कोई कर्म ना करें तो उसकी आयु उतना ही रहेगा जितना कि निश्चित हो गया है। किंतु जीवन तो कर्म क्षेत्र हैं इसलिए कर्म तो होते ही रहते हैं इस जीवन में असंयम के कारण शीघ्र मृत्यु को शरीर प्राप्त हो जाता है। इसके ठीक विपरीत दीर्घ संध्या नियमित हितप्रद भोजन व्यायाम प्राणायाम व ब्रम्हचर्य रक्षण करने से उसकी आयु उस पूर्व निश्चित आयु से भी बढ़ा सकता है। जो मनुष्य ईश्वर के आज्ञा के विरुद्ध जीवन जीता हुआ संसार में व्यवहार करता है वह सुखों से हीन होकर दुष्ट मनुष्यों से कष्ट पाता हुआ दुखी रहता है। आइए हम सब परमात्मा की व्यवस्था को स्वीकार करें और वेदा अनुकूल जीवन जी करके अपने कर्मों को पवित्र बनाएं जिससे हमें सुख की प्राप्ति हो। कार्यक्रम में मुख्य रूप से अजय बरनवाल, विश्वनाथ, चंद्रप्रकाश चौधरी, संतोष पाण्डेय, पवन कुमार, उपेन्द्र आर्य, गंगासागर, नेहा, अनीता जायसवाल सहित अनेक लोग उपस्थित रहे।
गरुण ध्वज पाण्डेय।