Saturday, July 6, 2024
विचार/लेख

शंकालु रवैये से नहीं निकलेगा समाधान

विचार/लेख।‘आर्थिक असंतुलन दूर करे सरकार’ शीर्षक से प्रकाशित आलेख में भरत झुनझुनवाला ने कई मुद्दों की और ध्यान आकृष्ट कराया है, लेकिन उनके मत कुछ पूर्वाग्रह से प्रेरित लगे। प्रतीत होता है कि बड़े उद्यमों से लेकर पूंजी बाजार को लेकर लेखक के मत व्यावहारिक नहीं हैं। निःसंदेह छोटे उद्यमों की समयानुकूल सहायता आवश्यक ही नहीं, अपितु अपरिहार्य है, लेकिन केवल इसी कारण अपनी अर्थव्यवस्था के दुधारु क्षेत्रों की अनदेखी भला कैसे की जा सकती है। इस वास्तविकता से इन्कार किया ही नहीं जा सकता है कि यदि घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए छोटे उद्यम महत्वपूर्ण हैं तो बड़े एवं संगठित उद्योग भी उतने ही आवश्यक हैं। लेखक यह क्यों भूल जाते हैं कि तमाम बड़े उद्यमों के लिए जो एक व्यापक आपूर्ति तंत्र और ईकोसिस्टम होता है, उसमें न जाने कितने वेंडर बहुत छोटे स्तर पर काम करने वाले होते हैं। फिर बड़े उद्योगों द्वारा सृजित होने वाली संपदा देश के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान देने के साथ ही कर राजस्व से लेकर रोजगार सृजन में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाती है। यदि उनसे आवश्यक संसाधन उपलब्ध होंगे तभी अन्य क्षेत्रों के लिए संसाधन जुटाने में सफलता मिल सकेगी। लेखक ‘ट्रिकल डाउन थ्योरी’ की उपादेयता को भी नकारते हुए लगते हैं। इसी प्रकार वह सेंसेक्स या पूंजी या बाजार में तेजी के सिलसिले को भी आशंका की दृष्टि से देखते हैं। यदि हमारा शेयर बाजार कुलांचे भर रहा है और देसी-विदेशी निवेशक उसमें धन लगा रहे हैं तो तभी न जब उन्हें उसमें अपेक्षित मुनाफे की गुंजाइश दिख रही होगी। असल में शेयर बाजार में जारी तेजी हमारे पूंजी बाजारों की गहराई और परिपक्वता को ही दर्शाती है। उसे लेकर शंकालु बनने के बजाय अधिक से अधिक लोगों को उससे जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करना कहीं अधिक श्रेयस्कर होगा, क्योंकि अभी भी बहुत कम भारतीय शेयरों में निवेश करते हैं। इससे जहां उद्यमों के लिए पूंजी की किल्लत दूर होगी, वहीं शेयर बाजार को भी स्थायित्व मिलेगा। यह अर्थव्यवस्था के लिए ‘विन-विन’ यानी समग्र फायदे का सौदा सिद्ध होगा।

-अरुण कुमार