Wednesday, June 26, 2024
साहित्य जगत

ग़ज़ल

इस वबा को विदा कीजिऐ।
अय ख़ुदा अब दया कीजिऐ।।

तीरगी छा रही चार सू।
चाँद- सूरज नया कीजिऐ।।

तोड़कर धर्म की बेड़ियाँ।
आइये सब दुआ कीजिऐ।।

है शिफ़ाख़ाना ख़ुद जांबलब।
इसकी थोड़ी दवा कीजिऐ।।

देश जो कर रहा पाप यह।
उसकी हस्ती फ़ना कीजिऐ।।

“ग़ैर ” तो पारसा पाक है।
इस पे रहमत ख़ुदा कीजिऐ। ।

अनुराग” ग़ैर “

जिला आबकारी अधिकारी अमरोहा