ग़ज़ल
इस वबा को विदा कीजिऐ।
अय ख़ुदा अब दया कीजिऐ।।
तीरगी छा रही चार सू।
चाँद- सूरज नया कीजिऐ।।
तोड़कर धर्म की बेड़ियाँ।
आइये सब दुआ कीजिऐ।।
है शिफ़ाख़ाना ख़ुद जांबलब।
इसकी थोड़ी दवा कीजिऐ।।
देश जो कर रहा पाप यह।
उसकी हस्ती फ़ना कीजिऐ।।
“ग़ैर ” तो पारसा पाक है।
इस पे रहमत ख़ुदा कीजिऐ। ।
अनुराग” ग़ैर “
जिला आबकारी अधिकारी अमरोहा