Saturday, July 6, 2024
साहित्य जगत

है कायम आज भी वो दहशत…

है कायम आज भी वो दहशत,
जो महामारी में आया था।
नंगे नंगे पावो से नन्हें बच्चों ने,
घर वापसी का रुख अपनाया था।

त्रासदी कहले इसको या कहले,
मानव का खुद का भूल।
जो चलते तपते भुखो से,
रास्तों में जिदंगी से गए झूल।

न जाने कितने निर्धन कितने असहाय,
रोजी रोटी से धोएं लिए हाथ।
हो गए लाचार अपने आय से,
नहीं मिटा पा रहे भूख प्यास।

है निदान इस प्रलय से,
खुद को संज्ञान में रखने से।
निरोगी की प्रथमिकता अपनाकर,
खुद को सुरक्षित करो आज।

आशीष प्रताप साहनी
भीवापार भानपुर बस्ती
उत्तर प्रदेश 272194
865275912