Sunday, May 19, 2024
साहित्य जगत

कठिन शैली में आसान ग़ज़ल———–०

हालत हो गई बद से बद.
पिट गई यारों अपनी भद.

यौगिक शब्दों का आरम्भ-
हिंदी -शब्द- कोश में तद.

मर्यादाएं तोड़ के उसने-
पार करी सारी सरहद.

श्रद्धावश आवेग में आके-
हम भी यार! हुए गदगद.

उत्पाद-श्रृंखला का प्रबंधन-
दुनिया में है खाद्य- रसद.

जिसको जरा सहारा दे दो-
वह जाता कंधों पर लद.

पूंजीपतियों की सेवा में-
देश के हो गये खाली मद.

मालिकों की बल्ले-बल्ले-
मजदूरों की दशा दु:खद.

अपने जीवन में गरीब की-
सदा कीजिए आप मदद.

दूर भी रहके हम जीवन में-
तुझ से रहे सदा आबद्ध.

हर्षानन्द से खाली हो गए-
चित्त के बहु-उद्वेगी मद.

दूर देश को माल ये जाना-
पहले करो इसे आमद.

यू.एस.ए. के आगे यारों!-
सभी देश के बौने कद.

शील-समाधि-प्रज्ञा बल से-
मन की नाद हुई अनहद.

भीम- बुद्ध के प्रयासों से-
मानव-जीवन हुआ सुखद.

कैसे तारीफ करू आपकी-
पास नहीं कहने को शब्द.

खोई-खोई दुनिया केवल-
ढाई -आखर -प्रेम में मद.

कफ-वात व पित्त दोषों में-
बहुत कारगर है बरगद.

दूर रहे हैं सुविधाओं से-
पिछड़े हुए सदा जनपद.

आश्वासन दे कर झूठों ने-
सच की पिटवा दी है भद.

देश में अबतो मजलूमों पे-
सत्ता बन छाई कामद.

घटनाओं से आच्छादित हो-
प्रवृति बन गई आपद.

सफल वही है इस दुनिया में-
छवि हो जिसकी अति विषद.

हिटलर -शाही ये सत्ता तो-
पार कर गई सारी हद.

स्टांक -मार्किट का सुप्रीमो-
बेताज -बादशाह था हर्षद.

आप हमारे हो जानेमन-
मृदुल- भाषी प्रियं- वद.

घर कैसे जाये कोहरे में-
रेल सभी हो गई हैं रद.

इतना सबकुछ होने पर भी-
शांत रही अपनी संसद.

लिखदी है तहरीर वक्त की-
आप को ताकि रहे सनद.

-डॉ सुरेश उजाला
लखनऊ(उत्तर प्रदेश)