Monday, July 1, 2024
बस्ती मण्डल

पुण्य तिथि पर याद किये गये फिराक गोरखपुरी

मौत का भी इलाज हो शायद, जिंदगी का कोई इलाज नहीं

बस्ती । ‘एक मुद्दत से तेरी याद भी न आई हमें, और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं, जैसी शायरी करने वाले अजीम शायर और लेखक फिराक गोरखपुरी जिनका असली नाम रघुपति सहाय था को उनके 39 वें पुण्य तिथि पर याद किया गया। बुधवार को वरिष्ठ नागरिक कल्याण समिति और प्रेमचन्द साहित्य संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में कलेक्टेªट परिसर में आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं के फिराक गोरखपुरी के जीवन और साहित्य से जुड़े अनेक सन्दर्भों पर विमर्श किया।
मुख्य अतिथि प्रधानाचार्य ओम प्रकाश पाण्डेय ने फिराक गोरखपुरी के जीवन वृत्त पर प्रकाश डालते हुये कहा कि वे बीसवीं सदी की उर्दू शायरी के सबसे बड़े हस्ताक्षरों में एक थे। वे जितनी अपनी शायरी के लिए जाने जाते हैं उतने ही उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से भी मशहूर हैं। उनका जन्म 28 अगस्त सन् 1896 में गोरखपुर में हुआ था और तीन मार्च 1982 में मृत्यु हो गई थी। ‘पाल ले एक रोग नादां जिंदगी के वास्ते, सिर्फ सेहत के सहारे जिंदगी कटती नहीं.’ जैसे शेर आज भी लोगों की जुबा पर आ ही जाते हैं।
अध्यक्षता करते हुये वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम प्रकाश शर्मा ने कहा कि ‘बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं, तुझे ऐ जिंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं’ मौत का भी इलाज हो शायद , जिंदगी का कोई इलाज नहीं’ जैसी शायरी को शव्द देने वाले फिराक गोरखपुरी एक शिक्षक के रूप में प्रतिष्ठित रहे। स्नातक के बाद उनका चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए भी हो गया था। परंतु उस समय देश-प्रेम की भावना से ओतप्रोत होकर उन्होंने सरकारी नौकरी को छोड़ स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े। और जंगे आजादी में पूरी शिद्दत से भाग लेने लगे। ऐसे महान शायर से प्रेरणा लेने की जरूरत है।
कार्यक्रम में पं. चन्द्रबली मिश्र, भागवत प्रसाद श्रीवास्तव, बाबूराम वर्मा, विनय कुमार श्रीवास्तव, डा. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ पंकज कुमार सोनी, शाद अहमद ‘शाद’ दीपक सिंह प्रेमी, फूलचन्द्र चौधरी, पेशकार मिश्र, रामचन्द्र राजा, अजमत अली सिद्दीकी आदि ने कहा कि फिराक साहब ने उर्दू साहित्य अपनी एक खास जगह बनाई वे उर्दू के ऐसे महान शायर थे जिन्होंने उर्दू गजल के क्लासिक मिजाज को नई ऊंचाई दी। उन्होंने हर विधा में लिखा। उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मभूषण आदि अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया और अंत में 3 मार्च 1982 उनका निधन हो गया। मुख्य रूप से दीनानाथ यादव, लालजी पाण्डेय, कृष्ण चन्द्र पाण्डेय, नेबूलाल चौधरी आदि शामिल रहे। इस अवसर पर सुधी साहित्यकारों को सम्मानित किया गया।