Friday, July 5, 2024
धर्म

आओ चलें वेद की ओर

मनुष्य का पतन इतना अधिक हो चुका है कि वह अपने स्वार्थ के लिए ईश्वर की सत्ता को मानने से भी इन्कार करता है। अथवा जैसा ईश्वर वास्तव में है, वैसा ठीक-ठीक, सही रूप में स्वीकार नहीं करता। अपनी मूर्खता और स्वार्थ के कारण मनुष्य ने ईश्वर के, सैकड़ों रूप कल्पित कर डाले।*
ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में चार ऋषियों को चार वेदों का ज्ञान दिया। *चार वेदों में ईश्वर ने अपना स्वरूप बताया, कि वह कैसा है?* फिर हम सब आत्माओं का स्वरूप बताया, कि आप और हम आत्मा लोग वास्तव में कैसे हैं? और तीसरा जड़ पदार्थों प्रकृति आदि जगत की वस्तुओं के बारे में भी खूब बताया, कि अग्नि से क्या लाभ हैं, सूर्य से क्या लाभ हैं, अनाज भोजन फल फूल साग सब्जी औषधि जड़ी बूटी वनस्पति इत्यादि पदार्थों से क्या-क्या लाभ हैं! इनका प्रयोग कब कहां कितना तथा किस तरह से करना चाहिए, ये सब बातें बताई। इसके अतिरिक्त ईश्वर ने वेदों में यह भी बताया कि, कौन-कौन से कर्म करने चाहिएं, और कौन से कर्म नहीं करने चाहिएं। अच्छे बुरे कर्मों का सारा विधान तथा निषेध भी बताया।*
*जब ईश्वर ने अपना सही स्वरूप के वेदों में बता दिया, और लोग वेदों को न पढ़ें, वेदो के व्याख्याकार ऋषियों के ग्रंथ न पढ़ें, तो अब दोष किसका? लोगों का।*
महाभारत के युद्ध के पश्चात् वेदों के पठन-पाठन का क्रम टूट गया। बड़े-बड़े राजा और विद्वान लोग युद्ध में मारे गए। परिणाम यह हुआ कि जो अनाड़ी लोग बचे, वही समाज-राष्ट्र के संचालक अध्यापक गुरु आचार्य राजा आदि बन बैठे। उन्होंने वेदों के पठन-पाठन की परंपरा को कठिन मानकर छोड़ दिया। तथा धर्म और ईश्वर के नाम पर बिना सिर पैर की उल्टी सीधी वेद विरुद्ध हानिकारक तथा विनाशक परंपराएं चला दी। आज उसी का परिणाम सारी दुनियां भोग रही है आज कुछ लोगों को छोड़कर, प्रायः सभी लोग ईश्वर और धर्म के विषय में भटके हुए हैं। सिर्फ वही लोग धर्म और ईश्वर को ठीक प्रकार से जानते समझते हैं, जो वेदों का अध्ययन ऋषि मुनियों की परंपरा से सच्चे गुरु आचार्यों के माध्यम से करते हैं। वेदों में तो ईश्वर ने कर्मों का संविधान बता ही दिया है। इसके अतिरिक्त भी ईश्वर प्रतिदिन हम सबको समझाता है, कि भाइयो अच्छे कर्म करो, बुरे कर्म मत करो, और शीघ्र ही मोक्ष प्राप्ति करो। परंतु लोग उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं देते। *ईश्वर मनुष्य को नहीं बदल पाया, जबकि मनुष्य ने सैकड़ों ईश्वर बदल डाले।(क्योंकि मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है. वह अपनी मनमानी करता है, ईश्वर की भी बात नहीं सुनता।)हर समय ईश्वर हम सब के साथ रहता है, सबके मन में अच्छे कर्मों में उत्साह आनंद निर्भयता को उत्पन्न करता है, कि यह कर्म अच्छा है, इसे अवश्य करो। और बुरे कर्म करने के अवसर पर सबके मन में भय शंका लज्जा उत्पन्न करके पूरी सूचना देता है, कि यह कर्म मत करो। तो वेदों को न पढ़ने से लोग ईश्वर को ठीक से समझ नहीं पाए, और तरह-तरह के ईश्वर की झूठी कल्पनाएं कर लीं। सैंकड़ों संप्रदाय बनाकर खड़े कर दिए। आज यदि इन सब संप्रदायों की गिनती करें, तो लगभग 2,000 से कम नहीं होंगे। इतने संप्रदाय वाले लोग ईश्वर को अपने-अपने ढंग से मानते हैं। सत्य तो एक ही होता है, बाकी असत्य तो हज़ारों हो सकते हैं। जैसे 5×8=40. यही एक उत्तर सत्य है। बाकी सारे उत्तर ग़लत हैं।
जैसे कि 5×8=33. 5×8=50. 5×8=55. इत्यादि।
तो अब आप सोचिए, कि मनुष्य का कितना पतन हो गया। वह ईश्वर का वास्तविक स्वरूप समझना ही नहीं चाहता। वेदों को पढ़ना ही नहीं चाहता। तो सोचिए कि मनुष्य का कल्याण कैसे हो सकता है?
आज का मनुष्य वेदों को छोड़कर इधर-उधर की व्यर्थ पुस्तकों में अपना समय नष्ट कर के और ईश्वर के नकली स्वरूप की पूजा उपासना आदि करके ईश्वर से प्राप्त होने वाले लाभ से वंचित हो रहा है। और अपना समय शक्ति धन बल विद्या बुद्धि आदि बेकार के कामों में नष्ट कर रहा है। ईश्वर के वास्तविक स्वरूप को न समझ कर, अब तक मनुष्य ने ईश्वर के सैकड़ों स्वरूप कल्पित कर लिए, जो कि वेदों के विरुद्ध हैं। और इसी कारण से दुनियां भर में लड़ाई झगड़े हैं। जब तक वेदों को पढ़कर ईश्वर का सही स्वरूप नहीं जानेंगे, नहीं समझेंगे, सबको जब तक सही स्वरूप नहीं समझाएंगे, तब तक संसार में अशांति रहेगी। लड़ाई झगडे होते रहेंगे।
जैसे गणित में यदि आप, 2/4 प्रकार के उत्तर आप लोगों को सिखाएंगे, जैसे कि ऊपर उदाहरण लिखे हैं, तो वहां भी झगड़े आरंभ हो जाएंगे।
हरि ओम प्रकाश
पत्रकार
मोबाइल नंबर 97 21 1225 86