Sunday, June 30, 2024
धर्म

तक्षक जगत से पृथक नही है

                 श्रीमद्भागवत कथा

बस्ती । तक्षक जगत से पृथक नही है, वह भी ब्रम्ह रूप है। शरीर रूपी रथ को जो श्रीेकृष्ण के हाथों में सौंप देता है उसे विजय श्री मिलती है । सुदामा ने ईश्वर से निरपेक्ष प्रेम किया तो उन्होने सुदामा को अपना लिया और अपने जैसा वैभवशाली भी बना दिया।मनुष्य का शरीर ही वह कुरूक्षेत्र है जहां निवृत्ति और प्रवृत्ति का युद्ध होता रहता है। जीव जब ईश्वर से प्रेम करता है तो ईश्वर जीव को भी ईश्वर बना देते हैं। यह सद्विचार कथा व्यास आचार्य रघुनाथ शास्त्री ने बैरियहवा में सिद्धनाथ उपाध्याय द्वारा आयोजित 7 दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा मंे व्यासपीठ से व्यक्त किया।
श्रीकृष्ण, रूक्मिणी विवाह, सुदामा चरित्र आदि कथा प्रसंगों का वर्णन करते हुये कथा व्यास ने कहा कि पति यदि धन, सम्पत्ति, सुख सुविधा दे और पत्नी ऐसे पति की सेवा करे तो इसके आश्चर्य क्या है, धन्य हैं सुदामा की पत्नी सुशीला जिन्होने भूखे रहकर भी दरिद्र पति को भी परमेश्वर मानकर सेवा करती रही। भगवान कृष्ण ने जो सम्पत्ति कुबेर के पास भी नही है उसे सुदामा को दिया। सारा विश्व श्रीकृष्ण का वंदन करता है और वे एक दरिद्र ब्राम्हण और उनकी पत्नी सुदामा का वंदन करते हैं।
सुदामा चरित्र का भावुक वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा कि शारीरिक मिलन तुच्छ है और मन का मिलन दिव्य। यदि धनी व्यक्ति दरिद्रों को हृदय से सम्मान दें तो आज भी सभी नगर द्वारिका की तरह समृद्ध हो सकते हैं।
श्रीकृष्ण द्वारा उद्धव को उपदेश देने के प्रसंग का वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा कि ज्ञानयोग, निष्काम कर्मयोग, भक्तियोग का ज्ञान देते हुये भगवान कृष्ण ने कहा कि उद्धव इस अखिल विश्व में मैं ही व्याप्त हूं, ऐसी भावना करना। सुख दुख तो मन की कल्पना है। जो सदगुणो से सम्पन्न है वह ईश्वर है और असंतुष्ट व्यक्ति दरिद्र।
मुख्य यजमान सिद्धनाथ उपाध्याय, श्रीमती आरती देवी ने विधि विधान से कथा व्यास का पूजन किया। श्रोताओं में मुख्य रूप से सन्त प्रकाश त्रिपाठी, डा. राम नरायन पाण्डेय, राखी दूबे, के.डी. पाण्डेय, सुरेन्द्र मिश्र, आलोक पाण्डेय, आनन्द पाण्डेय, राम दुलारे के साथ ही अनेक श्रद्धालु श्रोता उपस्थित रहे।