Saturday, November 9, 2024
साहित्य जगत

ग़ज़ल

यूँ भी ज़िन्दां से विदाई की गयी है ।
पर कतर कर ही रिहाई की गयी है ।।
टूट जाते हैं, ज़रूरत के समय सब ।
क्षीण, रिश्तों की बुनाई की गयी है ।।
वो गया आँसू मिरे भी साथ लेकर ।
पीर भी मेरी पराई की गयी है ।।
आ गयी तुम याद फिर से क्यूँ, बताओ?
बस अभी दिल की सफाई की गयी है ।।
बिक न पाया शाम तक, अब क्या करूँ मैं?
देर तक तो आना पाई की गयी है ।।
हों खिले ज्यूँ फूल गुलशन में हज़ारों ।
यूँ दुपट्टे पर कढ़ाई की गयी है ।।
मैं रहा डूबा वफ़ा में ‘ग़ैर ‘जी पर ।
साथ मेरे बेवफ़ाई की गयी है ।।
अनुराग मिश्र ” ग़ैर “
जिला आबकारी अधिकारी