Wednesday, July 3, 2024
साहित्य जगत

दोहे

हर कोई कहता यही ‘प्रेम जगत का सार’
मैं नफरत के गांव में बांट रहा हूं प्यार
तुम कबीर बनकर करो आत्म तत्व का बोध
जहाँ कहीं अन्याय हो जमकर करो विरोध
करो प्रभू की साधना ले मन में उत्साह
सपने में भी मत करो किसी वस्तु की चाह
योगासन में बैठकर करो केन्द्रित ध्यान
अन्तर्मन से करो तुम ओम ओम का गान
काम न हरगिज आयगा यह धन दौलत गेह
माटी में मिल जायगी यह माटी की देह

(अतीत के झरोखे से)
डॉ. राम कृष्ण लाल ‘जगमग’