सर्वोदय कवि घनश्याम प्रजापति “दंगल” -आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी
परिचय
घनश्याम प्रजापति “दंगल” का जन्म एक जुलाई, 1923 ई. तदनुसार सं० 1980 वि० में कप्तानगंज के सन्निकट पटखौली बाबू में हुआ था जो कप्तानगंज से 6 किमी. और तहसील मुख्यालय हर्रैया
और जिला मुख्यालय बस्ती से 17- 17 किमी. दूरी पर स्थित है । इनके पिता का नाम श्री जगेश्वर और माता का नाम श्रीमती मलिका रानी था । दंगल जी की शिक्षा दीक्षा मिडिल तक हुई थी।
सर्वोदय समर्पित व्यक्तित्व
बचपन से ही से बड़े यायावरी प्रवृत्ति के थे और इसीलिए वे सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से आचार्य नरेन्द्रदेव के साथ रहने लगे थे। वहां के बाद ये वर्धा, रनियवा”, पवनार, साबरमती आदि आश्रमों में रहकर बिनोवा जी और गांधी जी के व्यक्तित्व से वहुत प्रभावित हुए। ये सदैव खादी का कुर्ता और चूड़ीदार पायजामा पहनते थे। ये प्राइमरी विद्यालय के प्रधानाध्यापक भी रहे। कप्तान गंज ब्लाक के करचोलिया फार्म में इन्होंने अपना आवास बना रखा था, जहां विभिन्न प्रकार के पेड़ – पौधों से दिव्य वाटिका एवं आश्रम जैसा अनुभूति मिलती रही है। इसे बाद में उनके उत्तरजीवियों ने संभाल न सके और अब एक वीरान जंगल की शक्ल में दंगल जी के अतीत का बयान करता रहता है।
श्रीराम बाजपेई के संरक्षण में रहकर इन्होंने स्काउटिंग का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। धूमधाम कर लौटने के बाद दंगल जी महाकवि ‘द्विजेश’ जी सानिध्य में आये और जनपद के बहुचर्चित छन्दकर सुकवि रामचरित्र ‘पावन’ का स्नेह भी इन्हें मिला।वालचर संस्थाओं में तमाम पुरस्कार जीतने के कारण उन्होंने अपना उप नाम “दंगल” रखा।
रचनाएं
उत्तर प्रदेश हिंदी साहित्यिक निर्देशिका 1991,पृष्ठ 42 के अनुसार दंगल जी की निम्नलिखित रचनाएं प्रकाशित हुई हैं –
घर आंगन 1982, वसुंधरा 1982 ,कुल मर्यादा 1980 और नारी मर्यादा 1983।
दंगल जी गद्य के अच्छे साहित्यकार हैं इनकी जो भी पुस्तकें अब तक प्रकाशित हुई हैं, उनमे गद्य कृतियाँ ही है,किन्तु छन्दों के क्षेत्र में भी यह बहुचर्चित हैं। कवि सम्मेलनों में दंगल जी के हास्य प्रधान लतीफे दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर लेते हैं। छन्दो के ऊपर उनकी एक पुस्तक “काव्य कंचनी” अभी शीघ्र ही छपी है। उसके कुछ छन्द यहाँ प्रस्तुत है-
गोरी गोरी गंवई की भोरी भोरी छौरी सब
रस की कमोरी घोरी बोरी रग राती है।
लपकि लपकि अलकाली लटी गालन पै
सुधा को चुराने मानो झूमि झापि जाती है।
सुकटि नवेली सारी सारी में जरी की तारी
तारों बीच तारिका सी रस बरसाती है।
उझकि उझकि गौरी बीनती मधुक मधु
‘दंगल’ गनो का चित चंचल बनाती है।।
– (काव्य-कंचनी से )
महुवा बीनती हुई गंवई की गौरी का चित्र ‘ दंगल’ जी ने बड़े सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है। उसी प्रकार से पुन एक छन्द प्रस्तुत है –
आया ऋतुराज दिया मन में अपार मोद
भ्रमर विशोर छुम छुम लगे छूने।
सजी है बनाली मंजु बल्लरी विलास किये
तरुवर पूजन पै कुंज लगे झूमने ।
पिक औ पपीहा बोलि मन को चुरावे कहीं
चाँदनी ध्वल धरा धाम लगी चूमने ।।
भोरी भोरी वयसि किशोरी रसभोरी भई
“दंगल” किशोर संग संग लगी घूमने ।।
-(काव्य-कंचनी से)
दंगल जी का जीवन यायावरी जीवन है। एक स्मृति का छन्द देखिये-
सुधे वीणा करों में लिये नित मै
सुख दुख के स्वरों में बजाता रहा।
सतरंगे सुनहरे क्षणिक रंग मे
तन माया रंगे गीत गाता रहा ।
दिन बीत गये प्रिये केतिक पर
मैं भूल लिए दुहराता रहा ।
परवाह न की रवि सोम कला
अपने मन दीप जाता रहा।।
-(काव्य-कंचनी से)
दंगल जी के इन छन्दों में जीवन की अनुभूतिया टपकती हुई दिखायी पड़ती है। चूंकि दंगल जी एक गद्यकार के रूप में बहुचर्चित हैं, इसलिए इनके छन्दो में भी खड़ी बोली भाषा तथा भोजपुरी के शब्द यत्र-तत्र विखरे हुए दिखाई पडते हैं। दंगल जी आधुनिक चरण के बड़े ही सुहृदीयी छन्दकार हैं। इनका अध्यापकी जीवन, परिधान आदि अपने में अनूठा है। अपने सादगी, व्यवहार कुस्ता, कर्मठता और सत्यनिष्ठा के कारण ये राष्ट्रपत्ति पुरस्कार से सम्मानित हुए हैं। महमूदपुर का प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय इन्हीं की देन है। अपने मुस्कराते हुए चेहरे से दंगल जी जैसे ही मंच पर पधारते हैं, श्रोता और दर्शक चहचहा उठते हैं। यह वर्तमान पीढ़ी के प्रेरणा स्रोत हैं।
प्राइमरी स्कूल महमूदपुर
प्राइमरी स्कूल महमूदपुर की स्थापना 1966 में हुई थी और इसका प्रबंधन शिक्षा विभाग द्वारा किया जाता है। यह ग्रामीण क्षेत्र में स्थित है। यह उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के बस्ती सदर ब्लॉक में स्थित है। स्कूल में कक्षा 1 से 5 तक की पढ़ाई होती है। स्कूल सह-शिक्षा वाला है और इसमें कोई प्री-प्राइमरी सेक्शन संलग्न नहीं है। स्कूल में सरकारी भवन है। इसमें शिक्षण के लिए 5 कक्षा-कक्ष हैं। स्कूल में एक खेल का मैदान है। स्कूल में एक पुस्तकालय है और इसकी लाइब्रेरी में 99 किताबें हैं।