कुकुरमुत्ते की तरह जिले में फैल रहे बिना फायर एनओसी के अस्पताल। स्वास्थ्य विभाग मौन
संतकबीरनगर– आपने हमेशा खबरों में पढ़ा और देखा होगा कि अस्पतालों में आग लगने से कई नवजात शिशु और बच्चे बुजुर्ग की जलकर मौत हो गई हमेशा यह खबरें सुर्खियों में रहती है,आखिर ऐसा होता क्यों है आइए इसपर एक नजर डालते हैं, हमें अस्पतालों की सुविधा लेने से पहले उनमें क्या खामियां है,उसे जान लेनी चाहिए, कि जिसमें वह अपना इलाज करा रहे है वो कितना सुरक्षित है।
अस्पतालों में सबसे महत्वपूर्ण और गौर करने वाला पहलू फायर सर्विस का होता है, जिसे अस्पताल में इलाज कराने पहुंचा व्यक्ति नजर अंदाज करता है,और घंटों अस्पताल में बैठ कर अपने नंबर का इंतजार करता है।अगर उस दौरान अस्पताल परिसर में आग से संबंधित कोई अप्रिय घटना आपके साथ घटित हो जाए तो उसमें अस्पताल शोक संवेदनाओं के सिवा कुछ नहीं करता और अधिकारी यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि अस्पताल को फायर एनओसी प्राप्त नहीं थी।अस्पताल संचालक के ऊपर उचित कार्रवाई की जाएगी यह कहकर मामले को फाइलों में बंद कर दिया जाता है।
संतकबीरनगर जिले में अस्पतालों का हल ब्या करता फायर विभाग। फायर सर्विस विभाग के जारी आंकड़ों के मुताबिक,जिले में लगभग 10 परसेंट ही ऐसे अस्पताल है जिन्हें फायर एनओसी प्राप्त है,और बाकी 90 फ़ीसदी ऐसे अस्पताल हैं, जिन्हें स्वास्थ्य विभाग के रहमो करम पर रखा गया है।उन्हें फायर एनओसी से कोई वास्ता नहीं है, कुछ दिन पहले झांसी के एक अस्पताल में, आग की घटना के बाद कई बच्चे काल के गाल में समा गए।लेकिन स्वास्थ्य विभाग नहीं चेता और जिले में बेधड़क ऐसेअस्पतालों को अनुमति दे दी जिन्हें फायर विभाग ने अपनी एन ओ सी नहीं दी है। और वह अस्पताल मरीज के सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करते नजर आ रहे हैं।
क्या होती है फायर विभाग की एन ओ सी।
आप जहां इलाज के लिए जाते है, उन अस्पतालों में यदि आग से बचाव के उपाय नहीं हैं,तो इसके लिए वहा के सरकारी अधिकारी और भवन बनाने वाला विभाग जिम्मेदार है,अस्पतालों को प्रमुख रूप से अग्निशमन विभाग द्वारा 20 मानकों को पूरा करने के बाद ही एनओसी दी जाती है। इसमें मुख्य रूप से अस्पताल के चारों ओर दमकल की गाड़ियों के जाने का रास्ता, 15 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले अस्पताल में स्प्रिंकलर सिस्टम, स्वचालित स्मोक डिटेक्टर और हीट डिटेक्टर सिस्टम, कंट्रोल पैनल, पंप और पंप रूम की व्यवस्था, आपातकाल की स्थिति में चार तरह से निकास आदि हैं।यदि अस्पताल में यह मानक नहीं हैं तो अग्निशमन विभाग,अस्पताल प्रशासन को नोटिस भेजकर जवाब मांगे, यदि नोटिस में दी गई समय अवधि के भीतर जवाब नहीं आता है तो संबंधित अस्पताल को जुर्माना लगाया जाता है। और उसके साथ साथ भवन में लगा पानी-बिजली का कनेक्शन काट दिया जाता है।
इन सभी मानकों को पूर्ण करने के बाद फायर विभाग उन्हें अपनी एन ओ पी देता है, उसके बाद स्वास्थ विभाग उस अस्पताल को संचालित करने की अनुमति प्रदान करता है।
लेकिन संतकबीरनगर जिले में ठीक इसके उलट, कार्य कराया जा रहा है। अस्पताल को फायर एनओसी मिले या न मिले अस्पताल चलना है तो साहब को उनका हिस्सा जरूर मिलना चाहिए।