Saturday, June 29, 2024
साहित्य जगत

कठिन क्या है?

है कठिन पालन बहुत
जोर जिस पर दे रहें
पर दिखाने के लिए
बस रास्ते भटक रहे

कम क्या करना है हमें
न समझ आता यहाँ
जिसको है भूल जाना
भूल कहाँ पा रहे

आवश्यकता कम करें
ऊर्जा बचेगी खुद ब खुद
ऊर्जा बचाने के लिए
ऊर्जा को ही बढ़ा रहे

आसान है कहना बहुत
बिजली की बचत करें
आप अपने आप में
कितना नियम निभा रहे

कह गए ज्ञानी बड़े
भरता घड़ा है बूँद से
पर बूँद के लिए
कितने कंकर बहा रहे

धरती होगी तृप्त नहीं
कृत्रिमता के प्रचार से
धरती के गहने को
मिल सभी उड़ा रहे

भाव यूँ ही आ गए
और शब्द पूरित हो गए
भाव के भावार्थ को
कितने समझ पा रहे

छोड़कर चकाचौंध
लौट आओ सन्मार्ग में
इतनी सी बात को
कितना सब घुमा रहे

सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश