Sunday, January 19, 2025
बस्ती मण्डल

इन बेबस ग्रामीणों की नाव ही तो है सवारी

दुबौलिया/बस्ती।ब्लॉक क्षेत्र के तटबंध और नदी के बीच बसे दर्जन भर अधिक बसे गांवों के लोगों के लिए नाव ही सहारा है।वही तक ही नही रामजानकी मार्ग व तटबंध के बीच बसे सुरक्षित गांवों के अधिकांश ग्रामीणो को भी नाव रखना मजबूरी है।इनके गांव बाढ प्रभावित नही होते है।लेकिन इनकी खेती बाडी सरयू की बिकराल धारा के उसपार है।जहाँ पर पहुंचने के लिए नाव ही एक मात्र सहारा है।वही बांध व सरयू के बीच बसे दर्जनों गांव हर साल बाढ का कहर झेल रहे है।यही तकरीबन हर घरो मे नाव है।यहा बच्चे भी होस सम्हालते ही नाव की चलाने लगते है।नाव की यात्रा शौक नही इनकी मजबूरी है।इसके बिना इनके रोजमर्रा का काम भी पूरा नही हो पाता है।यहां घरो मे आनाज भले ही न हो।पर नाव बेहतर हो।इसका ध्यान यहाँ के हमेशा रहते है।बाजार जाना हो,बीमार को अस्पताल ले जाना हो,बच्चों को स्कूल जाना हो,खेती का काम हो अथवा पशुचारा लाना हो।सभी काम के लिए नाव की जरूरत पडती है।यह अलग बात है।की किसी के पास छोटी नाव है।तो किसी के पास बडी।बर्ष के चार माह जब इनके गांव पानी से घिर जाते है।तो नदी पार कर सुरक्षित स्थान तक जाने के लिए नाव ही एक मात्र साधन है।

सुविकाबाबू के जीतमल कहते है की यहाँ तो नाव ही हमारे लिए रेलगाड़ी, बस और टेम्पो है।नाव के बिना हमारा जीवन अधूरा है।नदी मे बाढ है तो नाव की जरूरत पडती है।सुविकाबाबू गांव मे ही करीब एक दर्जन से ज्यादा नाव है।आराजीडूही धरमुपुर के ग्राम प्रधान शोभाराम राजभर कहते है की बडे साइज की एक नाव बनाने में पचहत्तर हजार से लेकर एक लाख रूपये का खर्च आता है।नाव बनाने मे कटहल,जामुन, शीशम की ही लकडी प्रयुक्त होती है।इसके अलावा इसकी काटी अलग ढंग की होती है।बनाने वाले कारीगर भी कम है।ऐसे मे नाव बनाने के लिए संसाधन और कारीगर दोनो का अभाव है।लकडियाँ स्थानीय बाजार मे कम ही मिलती है।अधिकांश लकडियाँ बाहर से लानी पडती है।बडी नाव नदी के पास ही बनवानी पडती है।बजन मे अधिक होने के बजह से इसकी ढुलाई कठिन है।इसलिए नदी के पास बनाने से नदी मे ले जाना आसान होता है।

टकटवा गांव के रामजियावन कहते है।नाव मे पेंट नही लगाया जाता हैं।इसके लिए तारपीन का तेल इस्तेमाल किया जाता हैं।इससे लकडिय़ों के बीच का गैप भर जाता है।जिससे लकडी पानी मे सडती नही है।तथा लम्बे समय तक नाव सुरक्षित रहती है।कुछ लोग व्यक्तिगत नाव बनाते है। इसमे खर्च कम आता है।ढोंगी नाव मछलियों के शिकार के लिए काम आता है।

बैरागल गांव के वद्दीऊजमा कहते है।हमारा गांव बाढ प्रभावित नही है।लेकिन हमारी खेतीबाड़ी सरयू की धारा के उसपार है।इस लिए नाव रखना मजबरी है।जिन दिनो मे नाव उपयोग कम होता है।इन दिनो इनकी सुरक्षा कठिन होती है।अक्सर दूसरे गांव के लोग नाव खोल ले जाते है।क्षेत्र में ऐसी घटनाएं हो चुकी है।

क्षेत्र के बैरागल, पारा,मटिहा, दलपतपुर आदि गांव रामजानकी मार्ग बीच सुरक्षित हैं यहाँ बाढ नही आती है ।लेकिन यहाँ के कुछ ग्रामीणो की नाव रखना मजबूरी है।पारा गांव के ग्राम प्रधान मुकेश सिंह पिंटू कहते की गांव बाढ प्रभावित नही है। ग्राम पंचायत का एक गांव देवारागंगबरार बाढ प्रभावित है और हमारी पूरी ।की पूरी खेती सरयू की धारा के उसपार है जंहा नाव से ही जाना मजबूरी है ।मटिहा के कल्लू शुक्ल भी कहते है।की गांव बाढप्रभावित नहीं है।लेकिन खेती के लिए नाव रखना मजबूरी है।

देवारागंगबरार,दिलासपुरा, टकटवा ,चांदपुर, ऐहतमाली, भुअरिया, सुविकाबाबू, टेढवा, अशोकपुर माझा आदि गांव मे सबके पास छोटी बडी नाव है।जिससे लोग अपनी दिनचर्या पूरी करते है।

कहते है की मल्लाही भगवान श्रीराम भी उधार नही किए थे।लेकिन दुबौलिया ब्लॉक क्षेत्र के हर साल दर्जनों गांव बाढ से मैरूंड होते है।जहाँ तहसील प्रसाशन स्थानीय ग्रामीणों की नाव सुरक्षित स्थानों पर ले जाने के लिए लगाता है।लेकिन तहसील प्रशासन इन नाविको की मजदूरी नही देता जिससे स्थानीय ग्रामीण आपनी नाव नही जल्दी लगाने को राजी नही होते है जब बाढ आती है तो प्रशासन के लोग काफी मान मनौवल्ल कर ग्रामीणो की नाव लगवाते है ।विगत सप्ताह पहले दिलासपुरा के भरपुरवा गांव के नाविक राम चन्द्र इसलिए बाढ मे अपनी नाव लगाने से मना कर दिया की तहसील प्रशासन की तरफ से उसकी मल्लाही नही मिलती।काफी जद्दोजहद के बाद तत्कालीन ज्वांइट मजिस्ट्रेट प्रेम प्रकाश मीणा व ग्राम प्रधान प्रतिनिधि नवी अहमद की पहल पर मैरूंड गांव मे नाव लगाने को राजी हुआ।आराजीडूही धरमुपुर मुस्तहकम के ग्राम प्रधान शोभा राम राज भर कहते की तहसील प्रशासन हर साल बाढ मे नाव लगवाता लेकिन मल्लाही हर साल सबको नही मिलती है। एकाद बार हि मिली है दिलाशपुर भरपुरवा.गांव चंदर भी कहते है की बाढ मे नाव तो लगती है लेकिन पैसा नही मिलता है

विगत के पांच बर्षों मे नाव हादसो पर गौर करे तो विगत तीन बर्ष पहले 28दिसंबर को थाना क्षेत्र के पारा गांव के पास सरयू नदी की धारा मे करीब19लोग से भरी नाव डूब गई थी जिसमे 14लोग सकुशल बच गए थे।लेकिन एक किसान का शव घटना के नौ दिन बाद मिला था तो तीन किसानों का आजतक पता नही चला ।तो वही परिवार के लोग दरबदर भटकने के लिए मजबूर है।अभी बिगत 20मई को शुकुलपुरा के आधा दर्जन किसान डोंगी नाव पर सवार होकर सरयू नदी पार कर खेत की जुताई करने जा रहे थे।जिससे सोती मे नाव डूब गई।जिसमे पांच किसान साकुशल बच गए।लेकिन शुकुलपुरा के राजमणि शुक्ल की डूब कर मौत हो गई।परिजन आज भी आर्थिक मदद के लिए दरबदर भटक रहे है।अभी कल के नाव हादसे पर गौर करें तो मैरूंड गांव सुविकाबाबू के करीब एक दर्जन लोगो से भरी नाव डूब गई लेकिन गनीमत रही की सभी लोग बाल बाल बच गए।