Monday, January 20, 2025
साहित्य जगत

गज़ल

क्यूँ वो तूफान बने फिरते हैं ।
ख़ुद से अंजान बने फिरते हैं।।

आग गुलशन में लगा कर के वो।
कैसे इंसान बने फिरते हैं।।

बन गए मुल्क के हैजो दुश्मन।
मुल्क़ की शान बने फिरते हैं।।

जिन से मतलबनहीं हैकोई भी।
दिल के मेहमान बने फिरते हैं।।

मुझको दीवाना बना करके वो।
मुझसे अंजान बने फिरते हैं।।

काम ऐसा किया ज़माने में।
सबकी वो जान बने फिरते हैं।।

देखो दुनिया का तमाशा हर्षित।
कितने भगवान बने फिरते हैं।।

विनोद उपाध्याय हर्षित