Sunday, January 26, 2025
बस्ती मण्डल

रुक्मिणी मंगल की कथा का श्रवण करने से सांसारिक बाधाएं दूर होती हैं. (आचार्य धरणीधर)

संत कबीर नगर। बखिरा में चल रही श्रीमद्भागवत कथा अयोध्या जी से आए कथा प्रवक्ता आचार्य धरणीधर जी महाराज ने कहाभागवत स्वयं भगवान के मुख से प्रकट ग्रंथ है। यह पंचम वेद है। मृत्यु के भय का विनाश करने वाला मंगलमय ग्रंथ है। मानव जीवन के साथ-साथ सभी प्राणियों के लिए उद्धारक ग्रंथ है। नर को भी नारायण तक पहुंचाने का उत्तम सोपान है। भक्त और भगवान की गाथा अमर गाथा है। इसलिए अमर कथा है। सूत जी महाराज कहते हैं कि हे शौनकादि ऋषियों जब कई जन्मों का पुण्य उदय होता है तो सत्संग का लाभ होता है। सत्संग का मतलब श्रीमद्भागवत कथा। सत्संग का मतलब ईश्वर में सच्ची भक्ति। सत्संग का तात्पर्य जहां जाने के बाद आपका आचरण, व्यवहार ,सदाचार ,जीवन की गति परमात्मा की संगति के लिए बराबर बेचैन हो जाए वही सत्संग है। स्वामी जी ने कहा की श्रीमन्नारायण का कीर्तन, स्मरण व उनके गुणों को याद करके संसार में सांसारिक जीवन को सदाचार के साथ, सद्व्यवहार के साथ, बितायें यही सत्संग है। निरंतर परमात्मा के प्रति अग्रसर होते हुए अपने जीवन में भारतीय संस्कृति, सदग्रंथों में दिए गए मार्गदर्शन को सचेत होकर जीवन जीने का अर्थ ही सत्संग हो सकता है। आचार्य धरणीधर जी महाराज ने कहा की भक्ति का मतलब जीवों में जो सतत प्रेरणा हो। ईश्वरीय तत्व, परमसत्ता को समझने, जानने की नारायण ही संसार के सार तत्व हैं।वही भक्ति है। भज् धातु से भक्ति बनी है। आनंद कहीं बाजार में नहीं बिकता है। आनंद भक्ति के अंदर है। भज सेवायाम से ही, भजन करना, सेवा करना, पूजा अर्चना करना, श्रद्धा, दया, प्रेम इत्यादि का प्रयोग में लाना ही भक्ति है। श्रद्धा को अपने श्रद्धेय के प्रति अर्पित करना ही भक्ति हऐ रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थी। रुक्मिणी अपनी बुद्धिमता, सौंदर्य और न्यायप्रिय व्यवहार के लिए प्रसिद्ध थीं। रुक्मिणी का पूरा बचपन श्रीकृष्ण के साहस और वीरता की कहानियां सुनते हुए बीता था। जब विवाह की उम्र हुई तो इनके लिए कई रिश्ते आए लेकिन उन्होंने सभी को मना कर दिया। उनके विवाह को लेकर माता-पिता और भाई चिंतित थे। बाद में रुक्मणी का श्री कृष्ण से विवाह हुआइस अवसर पर ध्रुव नारायण चौधरी,राम शरण सिंह, महादेव प्रसाद, अशोक कुमार गुप्ता, संतोष कुमार,मनोज कुमार सिंह,अंजनी कुमार, धनुष धर पाण्डेय, सचिदानंद शास्त्री,अजय धर द्विवेदी